बिलासपुर जिला

सस्पेंड टीचर को चार माह का दे दिया वेतन जॉइनिंग से पहले फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर हुआ निलंबन, फिर भी स्वामी आत्मानंद स्कूल देता रहा वेतन

स्वामी आत्मानंद स्कूल में सरकारी सिस्टम की लापरवाही का अजब मामला सामने आया है। पहले तो फर्जी जाति प्रमाणपत्र की शिकायत वाले टीचर को प्रतिनियुक्ति दे दी गई। मामला सामने आया तो उसे निलंबित कर दिया गया। फिर निलंबन के बावजूद चार माह तक वेतन भुगतान किया जाता रहा। हैरानी की बात है कि प्राचार्य सहित अन्य अधिकारियों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया, अब मामला सामने आने पर उसे स्कूल से रिलीव किया गया है।

मामला कोटा के स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल का है। यहां मूलत: रायगढ़ जिले के खरसिया ब्लॉक के धोरपुर हायर सेकेंडरी स्कूल के लेक्चरर को प्रतिनियुक्ति पर रखा गया था। यहां प्रतिनियुक्ति पर आने के पहले ही उसके जाति प्रमाणपत्र को फर्जी बताया गया और मामले की शिकायत की गई। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने मामले की जांच की, जिसमें उसके जाति प्रमाणपत्र को फर्जी बताया गया।

दरअसल, भोलाराम बर्मन पिछड़ा वर्ग में आता है और उसने अपने आप को गोंड आदिवासी बताकर जाति प्रमाण पत्र हासिल कर उस वर्ग के कोटे से शासकीय नौकरी भी हथिया ली। मामला उजागर होने पर 5 अक्टूबर 2021 को उसे निलंबित कर दिया गया और उसका मुख्यालय खरसिया बीईओ ऑफिस रखा गया। इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी डीके कौशिक से संपर्क करने का प्रयास किया गया। लेकिन, उनसे संपर्क नहीं हो सका।

निलंबित फिर भी मिलता रहा वेतन
हैरानी की बात है कि जिस शिक्षक को विभाग ने निलंबित किया था, उसे सुनियोजित तरीके से प्रतिनियुक्ति पर रखकर चार माह तक वेतन भी भुगतान किया जाता रहा। जाहिर है कि टीचर प्रतिनियुक्ति पर है और उसे सस्पेंड किया गया है, तो उसकी प्रतिनियुक्ति समाप्त कर रिलीव कर दिया जाना चाहिए। लेकिन, प्राचार्य और अफसरों ने ऐसा नहीं किया और उसका वेतन भुगतान करते रहे।

मामला उजागर होने पर 12 फरवरी को किया रिलीव
इधर, जिला मुख्यालय और शिक्षा विभाग के नए अफसरों को इसकी भनक लगी, तब कलेक्टर को दिखाने के लिए आनन-फानन में उसे 12 फरवरी को कार्यमुक्त कर दिया गया है।

निलंबन बहाली और वसूली का चला खेल
बताया जा रहा है कि टीचर भोलाराम बर्मन की प्रतिनियुक्ति गलत तरीके से की गई थी। यही वजह है कि जब वह सस्पेंड हुआ, तब विभाग के संबंधित अधिकारियों को इसकी खबर मिली। फिर भी मामले को दबाए बैठे रहे। उन्हें यह भरोसा दिलाया जाता रहा कि उसका निलंबन भी खत्म करा दिया जाएगा। इस उम्मीद में अफसर और प्राचार्य मिलकर उसका वेतन भी भुगतान करते रहे।

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