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लुप्त प्रजाति बचाने के लिए एक ही उम्मीद: क्लोन मादा और 6 नरों का डीएनए टेस्ट|

छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए यहां बची एकमात्र क्लोन मादा वनभैंस दीपाशा से बच्चे होना जरूरी है। वनभैंसे हैं लेकिन पेंच यह आ गया है कि जिस अंतिम वनभैंस आशा के टिशू से दीपाशा का क्लोन बना, बचे हुए 6 वनभैंसे भी उसी के बच्चे हैं। इस तरह सभी एक ही परिवार के हो गए, इसलिए छत्तीसगढ़ के मूल वनभैंसे की लुप्त प्रजाति बचाने के लिए एक ही उम्मीद रह गई है कि सभी का डीएनए टेस्ट करवाया जाए।

अगर एकाध नर वनभैंस का डीएनए दीपाशा से मैच नहीं होगा, तब वंश बढ़ने की उम्मीद है। इसके लिए आखिरी कोशिश के तौर पर दीपाशा तथा 6 नर वनभैसों के सैंपल डीएनए टेस्ट के लिए हैदराबाद भेजे गए हैं। इसकी रिपोर्ट दो माह बाद आएगी। गौरतलब है कि दीपाशा क्लोन से तैयार की गई थी।

इसका उद्देश्य भी यही था कि छत्तीसगढ़ में इसके जरिए वनभैंसों की संख्या बढ़ाई जाए। लेकिन अब जब वो तैयार हो चुकी है, तो एक मुश्किल ये आई कि सभी नर वनभैंसों की जननी मादा वनभैंस आशा ही है, इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि सभी संभवत: एक ही परिवार के हैं इसलिए उनके बच्चे हुए तो कमजोर होंगे या जान को खतरा हो सकता है।

अभी उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में कुल 6 वनभैंसे हैं। दीपाशा के साथ इन सभी का ब्लड सैंपल हैदराबाद की सीसीएमबी की टीम लेकर गई है। दीपाशा को जंगल सफारी में रखा गया है।

क्लोन वनभैंस दीपाशा का जन्म हरियाणा में हुआ। गरियाबंद के उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में वनभैंस आशा के बाल और कान के टिश्यू निकालकर करनाल स्थित नेशनल डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल (एनडीआरआई) में क्लोन तैयार किया गया था। इससे दीपाशा का जन्म हुआ।

उसे तकरीबन चार साल करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में ही रखकर पाला गया। इस प्रक्रिया को पूरी करने में वन विभाग ने करीब एक करोड़ 10 लाख रुपये खर्च किए थे। दीपाशा को 2018 में करनाल से जंगल सफारी लाया गया था। यहां उसे अलग जोन बनाकर रखा गया। जंगल सफारी प्रबंधन ने 2018 से अब तक सिर्फ दीपाशा पर करीब एक करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं।

रिपोर्ट में जिन वन भैंसों का सैंपल मैच हो जाएगा, उसके साथ दीपाशा की मेटिंग नहीं हो सकती है, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि सैंपल मैच होने वाले वन भैंसों से बच्चों में अनुवांशिक विकार पैदा होगा। इसमें बच्चा लूला, लंगड़ा या फिर कमजोर पैदा हो सकता है। इसके अलावा, मेटिंग से पहले वन विभाग को एनटीसीए की अनुमति लेनी पड़ेगी। एनटीसीए की अनुमति नहीं मिली तो यह प्रोजेक्ट लंबित ही रहेगा।

छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसों की प्रजाति तेजी से लुप्त होने के करीब है, क्योंकि मादा नहीं बचीं। इनकी संख्या पांच साल पहले तक करीब 80 थी, लेकिन अभी बाड़े तथा जंगल को मिलाकर मूल छत्तीसगढ़िया वनभैंसे 15 ही बचे हैं। प्रजाति लुप्त न हो जाए, इसलिए प्रदेश में असम से पांच मादा और एक नर भैंसा लाया जाना है। इनमें एक नर और एक मादा लाए जा चुके हैं, चार मादाएं लानी बची हैं।

हैदराबाद की टीम दीपाशा के डीएनए टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लेकर गई है। रिपोर्ट दो माह में आएगी। वनभैंसों की लुप्त प्रजाति बचाने का प्लान इसी रिपोर्ट पर तय होगा।
 

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