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नवरात्रि विशेष : कवर्धा के तीन तालाबों के बीच विराजित हैं राजराजेश्वरी मां महाकाली, बड़ी संख्या में देश भर से मनोकामना लेकर पहुंचते हैं श्रद्धालु

राजराजेश्वरी मां महाकाली मंदिर में मां महाकाली, मां महालक्ष्मी, मां महासरस्वती के तीनों स्वरूप परिलक्षित है। इनमें मां महाकाली अत्यंत सौम्य स्वरूप में तीन तालाबों के बीच विराजित है। दस महाविधाओं में मां काली प्रथम है और श्री महा भागवत के अनुसार मां महाकाली ही मुख्य है और उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप शरण करने वाली दस महाविधाएं है। विद्यापति भगवान शिव की शक्तियां ये महाविधाएं अनंत सिद्घियां प्रदान करने वाली और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती है। मंदिर के प्रथम तल में नौ महाशक्तियां विराजित हैं।

मंदिर का स्वरूप अपने आप में पृथक और अनुपम है, कुल ऊंचाई 65 फीट है। वर्ष 1955-56 में तालाब की खुदाई के समय तीन मूर्तियां मिली थी। जिसमें अष्टभुजी दुर्गा, शिव पार्वती, काल भैरव-नरसिंह देव आदि हैं। साठ के दशक में मंदिर के लिए पहली समिति का गठन किया गया था। नवरात्रि में सन 1973-74 से ही मंदिर में 25-30 ज्योति कलश जगमगाने लगे थे। इनकी संख्या बढ़कर हजारों में हो चुकी है। प्राचीनकाल से ही मां भगवती का यह दरबार नगर के सभी समाजों की आस्था का केंद्र बिंदु रहा है।

 

विधि विधान से होती है पूजा

यहां वर्ष 1973-74 में आस्था की ज्योति कलश लगभग 25-30 की संख्या में जगमगाने लगे थे, तत्पश्चात लंबे समय तक ठाकुर भंवर सिंह मंदिर में पूजन का कार्य करते रहे, तत्पश्चात स्व. पं.राधेश्याम शर्मा, पं. अर्जुन प्रसाद शर्मा सहित अनेक लोगों ने पूजन का कार्य किया है। जानकारों व वयोवृद्वों का कहना है कि राजराजेश्वरी के रूप में स्थापित मां महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के अंश के रूप में आज भी विराजमान है। मां काली के दाहिने हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल फूल और बाएं हाथ में कमंडल तथा बाएं हाथ के नीचे अक्षरमाला छोटे-छोटे कणों में हैं। मंदिर के गर्भ गृह के अंदर के अनेकों रहस्य शोध का विषय बना हुआ है। पूर्व में यहां वाममार्गीय पूजा राजपुरोहित परिवार से पीड़ित अर्जुन प्रसाद शर्मा ने आचार्य का जब संभाला तब से यहां दक्षिण मार्गीय पूजा आरंभ हुआ जो आज भी चल रहा है। पर्व से मां भगवती का दरबार सभी समाज के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

मनोकामना लेकर पहुंचते हैं श्रद्धालु

दीपावली की रात्रि 12 बजे महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के रूप में विराजीं राजराजेश्वरी मां काली की पूजा होती है। अनेकों लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां पहुंचते हैं। वर्तमान में माता महाकाली मंदिर का निर्माण भव्य रुप से हो चुका है, तथा ज्योति कलश प्रज्जावलित करने के लिए ऊपर व नीचे तल पर व्यवस्था की गई है। माता के प्रति लोगों की आस्था लगातार बढ़ती जा रही है तथा दोनों नवरात्रि पर्व पर ज्योति कलश प्रज्जावलित करवाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

 

द्वादश ज्योर्तिलिंग कर रही आकर्षित

मंदिर के ऊपर ताल में द्वादश ज्योर्तिलिंग की स्थापना की गई है, जो लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद माता महाकाली बीच में स्थापित दिखेगी तथा उनके अगल-बगल में अन्य माताओं की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। जिनका दर्शन लाभ लोग ले रहे हैं

 

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