नर्मदांचल संवाद यात्रा में पूर्व सह संघचालक सुरेश भैया जोशी ने कहा-नदियों के अस्तित्व की रक्षा बगैर उनके प्रति आस्था रखने से कुछ नहीं होगा

सरकारें तो गूंगी एवं बहरी होती है जन आंदोलन से ही सरकार जागती है-सुरेश भैया जी जोशी
नर्मदा अंचल संवाद यात्रा में अमरकंटक फ्री जोन बनाओ का मामला उठा
विशेषज्ञों ने कहा पर्यावरण से छेड़छाड़ के कारण नदियां सूख रही है हो रही है नष्ट जैव विविधता

अमरकंटक/ गौरेला पेंड्रा मरवाही / जब तक नदियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए मानव समाज काम नहीं करेगा नदियों के प्रति आस्था रखने भर से कुछ नहीं होगा। जब नदी का अस्तित्व ही नहीं रहेगा तब आस्था का क्या करेंगे। नदियों के संरक्षण एवं प्रकृति को बचाने के लिए आने वाली पीढ़ी में संस्कार डालना जरूरी है तभी रक्षा हो सकेगी।
उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व मुख्य सरसंघ चालक सुरेश भैया जी जोशी विशेष आमंत्रित सदस्य अखिल भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मकर संक्रांति पर्व पर तीर्थ स्थली अमरकंटक के मृत्युंजय आश्रम में आयोजित नर्मदा अंचल संवाद यात्रा में कहीं। उन्होंने नर्मदा के बचाव एवं अध्ययन में जूडे विभिन्न विषय विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए कहा कि आप काम छोटे तौर पर कर रहे हैं या बड़े रूप में इससे फर्क नहीं पड़ता। आपका उद्देश्य पवित्र है यह बड़ी बात है। उन्होंने कहां की सरकारों के बारे में कहा जाता है कि सरकार गूंगी एवं बहरी होती है परंतु वैचारिक जन आंदोलन में ऐसी ताकत होती है कि सरकार को सुनने एवं देखने के लिए बाध्य होना पड़ता है। नदियों एवं प्रकृति के हास पर चिंता जताते हुए श्री भैया जोशी जी ने कहा कि मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहता है यही अहंकार प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। पर्यावरण के प्रति अनदेखी व्यवस्था की कमी है। पर्यावरण एवं नदियों के प्रति हमारा अनुचित व्यवहार इनकी खराबी का कारण बना हुआ है। अत्यधिक उपज के लिए रासायनिक खादों का उपयोग ,लकड़ियों के लिए जंगलों की अत्यधिक कटाई हम कर रहे हैं। ऐसे में पर्यावरण एवं नदियों की रक्षा में जुटे हुए आप जैसे लोगों का दायित्व है कि ऐसे लोगों के अहंकार एवं अज्ञानता को दूर करना है। प्रकृति एवं नदियों के प्रति सिर्फ आस्था से कुछ नहीं होगा जब नदी और प्रकृति नहीं रहेगी तब आप आस्था का क्या करेंगे। उन्होंने दिल्ली में यमुना जी की खराब स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि वहां यमुना का जल में आचमन कर पाना अत्यधिक कठिन है। उन्होंने कहां की प्रकृति एवं नदियों के प्रति आस्था के साथ हमें आने वाली पीढ़ी में प्रबोधन के साथ संस्कार डालना जरूरी है। उन्होंने वट सावित्री की पूजा का संदर्भ देते हुए कहा कि वट सावित्री के दिन हमने प्रयास किया है कि पूजा करने वाली महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करने के साथ घर में गमले में एक वट वृक्ष का रोपण करें तथा वर्ष भर उसमें पानी दे तथा अगले वट सावित्री को उसका कहीं पर सुरक्षित रोपण करें और यह प्रक्रिया साल दर साल चलती रहे। उन्होंने कहा कि इस तरह के संकल्प एवं लगातार प्रयासों से से प्रकृति नदियों एवं इस वसुंधरा की रक्षा हो सकती है। इसके पूर्व नर्मदा अंचल संवाद यात्रा में अमरकंटक फ्री जोन बनाओ एवं अरपा उद्गम बचाओबचाओ संघर्ष समिति पेंड्रा के संयोजक अक्षय नामदेव ने मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद उत्पन्न परिस्थिति की जानकारी देते हुए अमरकंटक को फ्री जोन बनाने की वकालत की तथा मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र के रेस्ट हाउस एवं रिसॉर्ट्स में मदिरापान एवं मांसाहार प्रतिबंधित करने की मांग की। तथा बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अंतर राज्य व्यवहार के कारण किस तरह की दिक्कत आ रही है।, पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष गौरेला श्रीमती संध्या राव ने प्राचीन अमरकंटक की स्मृति दिलाते हुए वर्तमान में नर्मदा एवं अमरकंटक के संरक्षण की बात कही। स्वयंसेवक पुरुषोत्तम पिपराहा, इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भूमि नाथ त्रिपाठी, प्रोफेसर अनिल कुर्मी अधिवक्ता लखन तिवारी, अशोक जैन, नीरज जैन, वंश धारी जी जिला सरसंघचालक पेंड्रा, दीपक शर्मा, वंदे महाराज ने अपनी बात रखी। प्रोफेसर भूमि नाथ त्रिपाठी ने अमरकंटक में भूमि मैं अम्ल बढ़ने की बात कही जिससे वहां की जैव विविधता को नुकसान हो रहा है वही अमरकंटक में पर्यावरण बचाओ के लिए काम कर रहे संत ने कहा कि 1994 में केसी आचार्य की रिपोर्ट जो तैयार की गई थी उसे लागू कर दिए जाने से अमरकंटक एवं नर्मदा की तमाम तरह की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। नर्मदा अंचल संवाद यात्रा की प्रस्तावना गजेंद्र जी ने रखी मंच पर स्वामी विश्वेश्वर आनंद स्वामी परमात्मानंद डॉ दिनेश जी भाई साहब उपस्थित थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मृत्युंजय आश्रम अमरकंटक में आयोजित नर्मदाअंचल संवाद यात्रा में सुरेश जोशी भैया जी पूर्व सर संघ कार्य संचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उपस्थिति में अमरकंटक फ्री जोन बनाओ के संयोजक एवं मां नर्मदा परिक्रमा वासी अक्षय नामदेव ने जिस तरह से मैंनेतीर्थस्थली अमरकंटक को फ्री जोन बनाओ विषय का मुद्दा उठाया उससे एक बार फिर अमरकंटक को फ्री जोन बनाने का मामला गरमा गया है । दरअसल अमरकंटक को फ्री जोन बनाने का निर्णय मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार को लेना है तथा पूर्व में अमरकंटक फ्री जोन बनाओ आंदोलन संघर्ष समिति की मांग पर सरकार ने मध्यप्रदेश के राज पत्र में अमरकंटक को फ्री जोन बनाने की अधिसूचना जारी भी कर दी थी परंतु मध्य प्रदेश के वित्त विभाग एवं परिवहन विभाग ने आर्थिक नुकसान को देखते हुए अमरकंटक को फ्री जोन बनाने के अनुसूचियां के बाद भी इस संबंध में आदेश जारी नहीं किए थे। पुन: नर्मदा अंचल संवाद यात्रा में
तीर्थ स्थल अमरकंटक को फ्री जॉन बनाओ की मांग रखते हुए संयोजक अक्षय नामदेव ने बतायावर्ष 2001 से सतत संघर्ष जारी है।
तीर्थ स्थली अमरंकटक की भौगोलिक स्थिति, तीर्थयात्रियों की दिक्कतों एवं इस देश के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था को ध्यान में रखते हुए माँ नर्मदा की उद्गम स्थली तीर्थराज अमरकंटक को फ्रीजोन बना देना चाहिये।
म.प्र. से छत्तीसगढ़ के विभाजन के समय कुर्सी पाने की होड़ में छत्तीसगढ़ के राजनेताओं ने अमरकंटक को छत्तीसगढ़ में शामिल कराने के लिये जैसा दबाव बनाना था, नहीं बनाये विभाजन के बाद म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती सरकारों ने सीमा को लेकर जो विवाद खड़ा कर दिया, उससे दोनों राज्यों के बीच कड़वाहट बढ़ गई। दोनों राज्यों के बीच संवादहीनता के चलते सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों के सीमावर्ती थानों में एक दूसरे राज्य के अधिकारियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज हो गये। सीमा विवाद के कारण पेण्ड्रारोड होकर तीर्थस्थली अमरकंटक जाने वाले तीर्थयात्रियों को न सिर्फ परेशानी हो रही है, उससे वहा तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों में भी कमी आयी है जिससे अमरकंटक के बाजार, व्यवसाय एवं वहाँ के स्थानीय निवासियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।वास्तविकता यह है कि आज तीर्थस्थली अमरकंटक भले ही म.प्र. के नक्शे में है परंतु अमरकंटक समेत उसकी तराई में बसे गाँवों में रहने वाले ग्रामीणों एवं वनवासियों का भौगोलिक, सामाजिक तथा व्यवसायिक जुड़ाव गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिला से है। सम्पूर्ण गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिला नर्मदाखण्ड के नाम से चिन्हांकित है। म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ समेत देश-दुनिया के कोने कोने से तीर्थ स्थली अमरकंटक आने वाले तीर्थयात्री छत्तीसगढ़ स्थित पेण्ड्रारोड रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं तथा पेण्ड्रारोड से सड़क मार्ग द्वारा अमरकंटक जाते हैं, क्योंकि पेण्ड्रारोड रेल्वे स्टेशन तीर्थस्थली अमरकंटक जाने के लिये सबसे निकटतम सुविधाजनक स्टेशन है, 5 जबकि आज हालात यह है कि म.प्र. सरकार ने छत्तीसगढ़ की ओर से अमरकंटक प्रवेश करने वाले सभी मार्गो पर अमरकंटक की सीमा पर परिवाहन विभाग (आर.टी.ओ.) का बैरियर लगा रखा है जहाँ के नियम कानून एवं अंतरराज्यीय व्यवहार के कारण यात्री बसों, ट्रक, मेटाडोर, जीप, टैक्सियों एवं टूरिस्ट बसों का अमरकंटक प्रवेश पर एक तरह से रोक है। श्रावण मास में नर्मदाकुण्ड से जल लेकर ज्वालेश्वर महादेव जल चढ़ाने जाने वाले कांवरियों के समूहों को आर.टी.ओ. के डर से छ.ग. की सरहद पर कबीर चौरा के पहले एवं ज्वालेश्वर महादेव में अपने वाहनों को खड़ा कर के पैदल अमरकंटक जाते हुए हम सबने देखा है। सभी जानते है कि माँ नर्मदा का उद्गम अमरकंटक तीर्थ मैकल पर्वत पर स्थित है जो सतपुड़ा एवं विध्याचल पर्वत का समवेत विग्रह है। माँ नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक में स्थित ज्वालेश्वर महादेव तीर्थ, अमरेश्वर महादेव तीर्थ, लोढेश्वर महादेव तीर्थ राजमेरगढ़ तीर्थ, माई के मड़वा तीर्थ, दुर्गा धारा तीर्थ, आमनाला तीर्थ, धरमपाली तीर्थ, माई की बगिया तीर्थ, कबीर चौरा जैसे पवित्र स्थान छ.जा. में स्थित है जो म.प्र. की सीमा से लगे हैं। पर क्या करोडो हिन्दुओं की आस्था स्थली अमरकंटक एवं माँ नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थक्षेत्र को जिला, राज्य की सीमाओं में बाँटकर देखना उचित है ? हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी बाजपेयी जी इस देश के करोड़ो हिन्दुओं की धार्मिक भावना एवं आस्था को ध्यान में रखते हुए विरोधी रहे देश चीन गये एवं वहाँ बातचीत कर हिन्दुओं के महातीर्थ कैलाश मानसरोवर जाने का मार्ग प्रशस्त किया, तब हमारे ही देश की दो राज्य सरकारें म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ आपस में संवाद बनाकर अमरकंटक मामले में बात क्यों नहीं कर सकतीं ? जबकि यह करोड़ो हिन्दुओं की आस्था का प्रश्न है। आंदोलन से जुड़े लोगों का मानना है कि वह नहीं चाहते कि तीर्थस्थली अमरकंटक को लेकर कोई विवाद हो, बल्कि हम चाहते हैं कि “अमरकंटक फ्री जोन” बनाने के लिये म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ में संवाद हो। छत्तीसगढ़ सरकार को इसके लिये पहल करना चाहिये तथा म.प्र. सरकार को भी थोड़ा उदार होना चाहिये। म.प्र. सरकार चाहे तो तीर्थ यात्रियों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से सिर्फ अमरकंटक में प्रवेश लेने वाले यात्री बसों, ट्रक, मेटाडोर, टैक्सी एवं टूरिस्ट बसों से निर्धारित न्यूनतम शुल्क लेकर 12 या 24 घण्टे की निर्धारित समयावधि के लिये प्रवेश दे सकती हैं। यह सुविधा सीमावर्ती वैरियर पर ही उपलब्ध हो। इसी के साथ अच्छा होगा कि म.प्र. उदारता पूर्वक निर्णय लेकर तीर्थस्थली अमरकंटक को फ्री जोन घोषित कर दे म.प्र. सरकार का तीर्थस्थली अमरकंटक को फ्री T जोन” बनाने का निर्णय करोडो हिन्दुओं की आस्था को पुष्ट करने के साथ म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ राज्य के संबंधों को मजबूत करने की * दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इसी के साथ हमारी मांग है कि माँ नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र स्थित रेस्ट हाउस एवं रिसोर्ट में मांसाहार एवं मदिरा पूर्णतः प्रतिबंधित हो। आशा है, आप हमारी भावना से अवगत होंगे। इस वैचारिक जन आंदोलन के संरक्षक संत ज्ञानेश्वर पुरी जी महाराज
संचालक ज्वालेश्वर धाम अमरकंटक, ग्राम तंवरडबरा जिला गौरेला पेण्ड्रा मरवाही रामनिवास तिवारी, पेण्ड्रा, सह संयोजक राजेश अग्रवाल (रज्जे) (गौरेला), ओंकार प्रसाद सोनी, पीताम्बर सिंह मार्को सदस्य बृजलाल राठौर (प्रचार मंत्री अखिल भारतीय राठौर क्षत्रीय समाज, नई दिल्ली), सुरेश ध्रुव, गणेश पाण्डेय नरेन्द्र प्रताप सिंह, भागवत मार्को, स्वामी कृष्ण प्रपन्नाचार्य जी. कामता महाराज, निर्माण जायसवाल नीरज जैन संतोष साहू शामिल है।

