गरियाबंद जिलाछत्तीसगढ़ स्पेशल

‘रोटी’ छिनते ही रो पड़ा किसान:बेमौसम बारिश से गल गईं सब्जियां, उधार लेकर 30 एकड़ में उगा रहे थे फसल, भूमिहीन है इसलिए मुआवजा भी नहीं

बेमौसम बारिश ने नदियों की उथली रेत पर सब्जी की खेती करने वाले 20 परिवारों के 30 एकड़ की मेहनत पर पानी फेर दिया। पानी भी ऐसा फेरा कि पौधे 6 दिनों तक पानी में डूबकर गल गए यानी अब उत्पादन शून्य हो जाएगा। किसान चूंकि भूमिहीन हैं इसलिए उन्हें मुआवजा भी नहीं मिल सकता। अफसोस यह भी कि किसान न्याय योजना या अन्य किसी योजना में इनके न्याय के लिए कोई जगह नहीं हैं। एक किसान तो पानी भरे खेत दिखाते-दिखाते रो पड़ा। खेतों में भरा पानी उसके व परिवार के हिस्से की रोटी छीनकर उसकी आंखों में भी पानी दे गया। 10 से 15 जनवरी 5 दिनों तक हुई बारिश ने देवभोग के उन भूमिहीन 20 किसान परिवारों पर भी बज्रपात किया है, जिनकी रोजी रोटी नदी की रेत पर निर्भर है। तेल नदी के दबनई, दहीगांव, करचिया, निष्गुठीड़ा, परेवापाली व सेनमुड़ा घाट पर 20 किसान परिवार लगभग 30 एकड़ रेत पर हर साल सब्जी की खेती करते हैं। आर्गनिक पध्दति से हो रही इस खेती की बदौलत इलाके भर को गर्मी के दिनों में ताजी व हरि सब्जियां उपलब्ध होती हैं। इसकी तैयारी नवंबर से की जाती है। जनवरी में फूल व फल लगे ही थे कि बेमौसम बारिश ने 70 फीसदी सब्जी की फसल चौपट कर दी।

प्रति एकड़ कमा रहे थे 60 हजार तक
देवभोग के किसान पदूनाथ, भकचंद निषाद ने बताया कि नदी में आए अचानक पानी के बहाव से टमाटर, बरबट्टी, टिंडा, नारंगी, करेला, भटा, तरबूज के अलावा कुल 12 प्रकार की सब्जियों के पौधे नष्ट हो गए। पौधे पानी में 6 दिन तक डूबे रहे जिससे फसल चौपट हो गई। ये किसान विगत 25 वर्षों से नदी में सब्जी की खेती करते आ रहे हैं, जिससे उन्हें प्रति एकड़ 50 से 60 हजार की आमदनी हो जाती है। इस आमदनी के लिए इतनी ही लागत व 4 माह की मेहनत लगती है।

साहूकारों से कर्ज लेकर बोते हैं सब्जी
दुखड़ा बताते किसान परिवार कई मर्तबा फूट-फूटकर रोया। किसानों ने कहा कि इससे पहले भी नुकसान हुआ पर अधिकतम 30 फीसदी का ही, जिसकी भरपाई वो दोगुनी मेहनत से कर लेते थे पर इस बार बारिश ने उन्हें कहीं का न रख। इन भूमिहीन किसानों को सरकारी कर्ज भी नहीं मिलता, साहूकार से कर्ज लेकर 6 माह गुजारे का इंतजाम करने परिवार सहित दिन रात मेहनत करते हैं। 20 परिवार के 88 सदस्यों के लिए नदी की रेत ही सब कछ है। इसे से परिवार का गुजारा चलता है।

टैक्स नहीं भरते इसलिए मुआवजा नहीं
नायब तहसीलदार अभिषेक अग्रवाल ने बताया कि ऐसी जमीन या रेत पर खेती चक आय की श्रेणी में आती है, रकबा के आधार पर सलाना मामूली शुल्क पटाकर पंजीयन कराना होता है। विगत दो वर्षों से इन्हें टैक्स भरकर पंजीयन कराने कहा जा रहा है पर सीजन में किसान भूल जाते हैं इसलिए इन्हें मुआवजा नहीं मिल सकता। नदी में डूब चुका कुछ ऐसा भी रकबा है जिसके भूमिस्वामी हैं, उन्हें मुआवजा दे पाना संभव है।

टूट पड़ी मुसीबत, उम्मीद नहीं : पानी की धार को मोड़ने की कोशिश ताकि फसल बच सके
किसान आंदोलन गवाह है कि वह मर सकता है पर टूट नहीं सकता। हौसलाजदा किसान परिवारों ने हिम्मत नहीं हारी है। अभी भी खेतों में घुटने भर से ज्यादा पानी है लेकिन पानी का बहाव कम है, ऐसे में किसान परिवार नदी की धार को उस दिशा में मोड़ रहे हैं जिधर उनकी फसल नहीं लगी है। पिछले 2 दिनों से हर किसान परिवार दिन भर में 8 घंटे की मेहनत इसी उम्मीद से कर रहा है ताकि बची हुए फसल को नुकसान से बचा सकें।

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