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कैंसर सर्वाइवर ने फतह किया हिमालय, 8 फाइटर्स के साथ 12 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची

कैंसर सर्वाइवर महिलाओं सहित 8 लोगों ने देश में पहली बार हिमालय की 12 हजार फीट ऊंची चोटी फतह की है। इसमें बिलासपुर की कैंसर सर्वाइवर प्रियंका शुक्ला भी शामिल थीं। इसके लिए उन्हें कैंसर पीड़ित महिला रेलकर्मी से प्रेरणा मिलीं, जो कीमोथैरेपी कराने के बावजूद रोज ड्यूटी पर जाती थीं।

दरअसल, अपोलो हॉस्पिटल प्रबंधन ने अपने पीक टू पीक विनिंग ऑवर कैंसर अभियान के तहत कैंसर सर्वाइवर को हिमालय के दयारा बुग्याल चोटी ट्रैकिंग कराई। अपोलो अस्पताल प्रबंधन के इस आयोजन का उद्देश्य कैंसर सर्वाइवर न केवल सामान्य जीवन बिता सकते हैं। बल्कि, सामान्य लोगों से भी बेहतर जिंदगी बिताते हुए मुश्किल परिस्थितियों का भी सामना कर सकते हैं।

हिमालय की ऊंची पहाड़ियों तक पहुंचे कैंसर पीड़ित।

12 हजार फीट ऊंची ट्रैकिंग के लिए बिलासपुर की प्रियंका राजेश शुक्ला का भी चयन हुआ था। जून माह में हुए इस अभियान का उद्देश्य कैंसर जैसी घातक बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता के साथ हिम्मत और हौसला बढ़ाना था। इस दौरान कैंसर सर्वाइवर को चार दिन और तीन रात बिना किसी सुविधा के पहाड़ों में ही बिताना पड़ा।

अपोलो प्रबंधन ने अभियान के लिए ट्रैकिंग इंडिया हाइक की मदद ली। इसमें प्रियंका राजेश शुक्ला के साथ ही देश भर के अलग-अलग शहरों से स्वागतिका, श्रुति, अर्चना होशंगणी, अमिताभ सरकार, सुश्रुत और 71 वर्षीय रिटायर्ड इसरो साइंटिस्ट डॉ. कुणाल कुमार दास शामिल रहे।

बिना किसी संसाधन और सुविधा के पहाड़ियों में बिताए तीन रात व चार दिन।

55 वर्षीय रेलकर्मी से मिला हौसला और जागी उम्मीद
प्रियंका शुक्ला बताती हैं कि साल 2016 में उनका कैंसर डाइग्नोस हुआ। वह बहुत तनाव में आ गई थी और रोने लगी थीं। तब वह 55 वर्षीय रेलकर्मी सपना चटर्जी से मिलीं। इस दौरान पता चला कि सपना कैंसर पीड़ित हैं और इलाज कराते हुए रेलवे में जॉब भी कर रही हैं। वह अस्पताल में कीमोथैरेपी करातीं और इसके बाद अपनी ड्यूटी पर भी जाती थीं। उन्हें देखकर प्रियंका का हौसला बढ़ा और नई ऊर्जा मिली।

लक्ष्य पूरा होने के बाद चेहरे पर आई मुस्कान।

स्वयं सेवी संगठन स्पंदन से जुड़ी हैं प्रियंका
प्रियंका शुक्ला स्वयं सेवी संगठन स्पंदन से जुड़ीं हैं और इसके माध्यम से कैंसर पीड़ित महिलाओं की सहयोग और गाइडेंस करने के साथ ही आर्थिक मदद भी करते हैं। छह साल पहले वह कैंसर से जूझ रही थी, तब कई ऐसी महिलाएं मिलीं, जिनकी स्थिति इलाज कराने की नहीं थी। उन्हें देखकर ख्याल आया है कि ऐसे लोगों की मदद के लिए काम किया जाए।

चुनौती से कम नहीं था कैंसर पीड़ितों के लिए लक्ष्य तक पहुंचना, फिर भी नहीं मानी हार।

कैंसर से लड़ने इच्छा शक्ति की है जरूरत
प्रियंका शुक्ला बताती हैं कि आमतौर पर कैंसर का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय पैदा हो जाता है और पीड़ित व्यक्ति नाम सुनकर तनाव में आ जाते हैं। जबकि, ऐसा नहीं है। कैंसर पीड़ित समय रहते डाइग्नोसिस कराएं और इलाज कराएं तो सामान्य लोगों की तरह जीवन बिता सकते हैं। इससे लड़ने के लिए इच्छा शक्ति और हौसलों की आवश्यकता है।

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