अस्वच्छ भारत मिशन:70 रुपय लाख में 105 हाथ रिक्शा व डस्टबिन के साथ उपकरणों की खरीदी, तीन महीने उपयोग करने के बाद ही कबाड़ में तब्दील

पंडरिया जनपद क्षेत्र के 35 ग्राम पंचायतों में सरकारी नुमाइंदों की अरुचि के कारण स्वच्छ भारत मिशन ठप पड़ गई है। यहां सफाई के लिए 70 लाख की लागत से खरीदे गए 105 रिक्शा, 105 डस्टबिन और अन्य उपकरण कचरे में फेंक दिए गए हैं। इन रिक्शों के पहिए सिर्फ 3 महीने ही ढुले। मानदेय नहीं मिलने पर महिला समूहों ने काम बंद कर दिया, जो दो साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया है।
जनपद क्षेत्र के ग्राम पंचायतों में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन नहीं हो पा रहा है। बिना उपयोग के लाखों रुपए खर्च खरीदी गई रिक्शा व अन्य सामग्री सालभर से पड़े- पड़े कबाड़ हो रहे हैं। पंचायतों के सरपंच भी इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं। वहीं स्टाफ कमी का हवाला देते हुए स्वच्छ भारत मिशन के नुमाइंदे मॉनिटरिंग नहीं कर रहे हैं।
गौरतलब है कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत वर्ष 2019- 20 में 35 पंचायतों के लिए 2- 2 लाख कुल 70 लाख रुपए स्वीकृत हुआ था। नियमत: खरीदी के लिए पंचायतों को कार्य एजेंसी बनाना था। लेकिन सरपंचों से बगैर प्रस्ताव के तत्कालीन सीईओ ने खुद ही कार्य एजेंसी बन नियम विरुद्ध खरीदी कर ली थी।
ऐसी सफाई नहीं चाहिए: मानदेय न मिलने से समूह ने बंद किया काम, जो 2 साल बाद भी शुरू नहीं
कचरा कलेक्शन नहीं, फिर भी 60 लाख से बनवा दिए सेग्रिगेशन सेंटर
स्वच्छता मिशन के तहत पंचायतों में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन नहीं हो रहा है। सफाई व्यवस्था पूरी तरह ठप पड़ी है। फिर भी सरकारी नुमाइंदों ने करीब 60 लाख रुपए खर्च कर 15 पंचायतों में सेग्रीगेशन सेंटर (गीला व सूखे कचरों को अलग करने का केंद्र) बनवा दिए हैं। घरों से कूड़ा नहीं उठने के कारण ये सेग्रीगेशन सेंटर भी अनुपयोगी साबित हो रहे हैं।
बड़ा सवाल: मानदेय नहीं, तो मुफ्त में काम क्यों करें…
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता मिशन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा मानदेय का है। शुरुआत के 3 महीने सभी 35 पंचायतों में महिला समूहों ने डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन किया, लेकिन यूजर चार्ज नहीं मिला। समूहों ने मानदेय की मांग की, तो बताया कि मानदेय का प्रावधान नहीं है। ग्राम पंचायतों को मिलने वाले 15वें वित्त की राशि में ढाई से 3 हजार रुपए मानदेय देने पर भी बात नहीं बनी। ऐसे में महिला समूहों के लिए मुफ्त में काम करना संभव नहीं है। यही समस्या, ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना के ठप पड़ने की बड़ी वजह है।
खरीदी जनपद स्तर से हुई थी, समूहों को प्रेरित कर रहे
स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के जिला संयोजक संजय सोनी का कहना है कि रिक्शा व अन्य उपकरणों की खरीदी जनपद स्तर से हुई थी, जो भी तत्कालीन सीईओ थे। महिला समूह ने काम शुरू भी कर दिया था, लेकिन मानदेय न मिलने पर बंद कर दिया। एसबीएम में मानदेय देने का प्रावधान नहीं है। ग्राम पंचायत स्तर से यूजर चार्ज वसूलकर मानदेय देने प्रस्ताव था। या फिर 15वें वित्त में कुछ राशि प्रतिमाह देने चर्चा हुई थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।