बिलासपुर जिला

इस्लामी कोर्ट ने कहा- अलग-अलग तारीखों में दिया गया तलाक जायज; फैसले को महिला ने हाईकोर्ट में दी चुनौती, कल सुनवाई

खुद की इस्लामी कोर्ट बताने वाली एक संस्था इदारा-ए-शरीया इस्लामी कोर्ट का तलाक के मामले पर दिया गया फैसला हाई काेर्ट पहुंच गया है। दरअसल, पति ने इदारा ए शरीया इस्लामी कोर्ट में तलाक का मामला पेश किया था। कोर्ट में दी गई अर्जी में उसने अलग-अलग तारीखों पर दिए गए तीन तलाक का जिक्र किया था। पीड़ित महिला ने इस्लामी कोर्ट के अस्तित्व और तलाक के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। अब इस मामले में बुधवार 16 फरवरी को सुनवाई होगी।

रायपुर की एक महिला ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर बताया कि उनका निकाह 18 जुलाई 2020 को रायपुर के डंगनिया के युवक से पारिवारिक सहमति से और इस्लामिक रीति-रिवाज से हुआ था। यह दोनों का दूसरा निकाह था। महिला के दो बच्चे हैं। बेरोजगार पति माता-पिता के साथ रहता है। पीड़िता नौकरी करती है। दोनों के साथ रहते हुए छह माह में ही विवाद हो गया। परेशान होकर पीड़िता ने सखी सेंटर रायपुर में पति और परिवारवालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। इससे नाराज पति ने शरीयतन तलाक देने का फैसला किया और शरीयत और दुनियावी कानून को सामने रखकर तीन महीने में हर माह एक-एक तलाक 31 अगस्त 2021, 30 सितंबर 2021 और 30 अक्टूबर 2021 को दिया।

इस तलाक के आधार उसने इदारा ए शरीया इस्लामी कोर्ट विद्या नगर, रायपुर में मामला प्रस्तुत किया था। इदारा-ए-शरीया इस्लामी कोर्ट ने 15 जनवरी को अपना फैसला सुनाया। संबंधित संस्था ने ही लेटर पैड पर अपने नाम के आगे इस्लामी कोर्ट छपवाया है।

महिला की याचिका पर ऑनलाइन सुनवाई
पीड़ित महिला ने इस्लामी कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। इस पर सोमवार को जस्टिस पी. सैम कोशी की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि रायपुर में इदारा-ए-शरीया इस्लामी कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला दिया है। यह आदेश इद्दत पर दिया गया है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के नाम को सार्वजनिक न करने को लेकर बहस हुई। इसकी ऑनलाइन सुनवाई में याचिकाकर्ता और शासन के अधिवक्ता, रजिस्ट्रार जनरल मौजूद रहे। नाबालिग बच्चे और महिला की सुरक्षा के लिए नाम की गोपनीयता बनाए रखने की मांग की गई। इस पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तरफ से एक आवेदन और लगाने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 16 फरवरी को होगी।

हाईकोर्ट सहित जिम्मेदारों को भी भेजी सूचना दी
इदारा ए शरीया इस्लामी कोर्ट ने अपने फैसले की कॉपी को हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर, कलेक्टर रायपुर, पुलिस अधीक्षक रायपुर, थाना प्रभारी डीडी नगर, टिकरापारा, कोतवाली व महिला थाना रायपुर को सूचनार्थ भेजी है।

ये है सुप्रीम कोर्ट का कानून
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक अब कानून बन गया है। कानून को 19 सितंबर 2018 से लागू हो गया है। शायरा बानों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की अमानवीय प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट का मानना था कि यह इस्लाम के खिलाफ है। इस कानून के तहत कई प्रावधान किए गए हैं-

  • तुरंत तीन तलाक यानी तलाक-उल-बिद्दत को रदद एवं गैर कानूनी बनाना।
  • तीन तलाक को संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान जिसके तहत पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है।
  • इसके तहत तीन साल की सजा का प्रावधान है।
  • मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है लेकिन जमानत के लिए पीड़िता का पक्ष सुना जाएगा।

तीन तलाक की मंजूरी, कहा- अपनी मर्जी से ससुराल से गई है

इदारा-ए-शरीया इस्लामी कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पति ने गवाहों की मौजूदगी में तीन तलाक दिया है। इस तारीख से दोनों एक-दूसरे के लिए हराम हो गए हैं। साथ ही कहा कि पीड़िता को मेहर की रकम में 20 ग्राम सोने की चेन दी गई है। वह अपनी मर्जी से शौहर की इजाजत के बिना ससुराल से गई हैं, इसलिए वह इद्दत का खर्च नहीं पाएगी।

डाक के जरिए भेजा तलाकनामा
इस्लामी कोर्ट ने पति के आवेदन पर सुनवाई की। उसने अपने फैसले में लिखा कि कोर्ट में काजी ए शरअ ने लिखा कि पति ने तीन तलाक दिया। लिखित तलाकनामा तीन तारीखों में डाक के जरिए पत्नी को भेजा गया है।

तलाक तीन माह में दिया जाए तो कानूनी
लगातार बोलकर दिया जाने वाला तीन तलाक पहले से अवैध था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर कानून बना दिया है। लेकिन अगर तीन बार में, अलग-अलग माह में तलाक दिया जाए तो वह अब भी कानूनी है। शरीया कोर्ट कोई न्यायालय नहीं है। यह समुदाय की पंचायत है। जैसे खाप पंचायत होती है, वैसे ही यह पंचायतों की तरह फैसला सुनाती है। 

Related Articles

Back to top button