दुर्ग नगर निगम में अनुकंपा नियुक्ति में गड़बड़ी की गूंज… अशोक करिहार आत्महत्या मामला फिर चर्चा में जानिए पूरा मामला…?


तहलका न्यूज दुर्ग// नगर पालिक निगम दुर्ग में अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े एक पुराने और संवेदनशील मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। लगभग दो वर्ष पूर्व निगम में कार्यरत कर्मचारी अशोक करिहार की आत्महत्या के बाद उनके पुत्र को मात्र दस दिन के भीतर अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई थी, जबकि उसी समय लगभग 40–50 कर्मचारी इसी श्रेणी में नियुक्ति के लिए प्रतीक्षारत थे। अब, इस नियुक्ति की वैधता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
निगम में प्राप्त आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, अशोक करिहार द्वारा छोड़े गए एक सुसाइड नोट में तत्कालीन अधिकारियों पर गंभीर मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए गए थे। इस पत्र में उपायुक्त महेंद्र साहू का नाम प्रमुखता से दर्ज है। आत्महत्या के कारणों की स्पष्ट जांच से पूर्व ही उनके पुत्र को नियुक्ति प्रदान कर दी गई, जिससे यह संदेह और भी गहराता है कि कहीं मामले को दबाने की जल्दबाजी में तो यह नियुक्ति नहीं की गई।
इस प्रकरण को लेकर नगर निगम कर्मचारी संगठन सहित राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (INTUC) ने निष्पक्ष जांच की मांग उठाई है। संगठन का कहना है कि जिस प्रकार निगम आयुक्त द्वारा हाल ही में तीन कर्मचारियों को निलंबित किया गया है, उसी तरह उच्च अधिकारियों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि अशोक करिहार की मृत्यु के समय न तो उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ था, और न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट निगम के पास उपलब्ध थी। इसके बावजूद, महज दस दिनों के भीतर उनके पुत्र को नियुक्ति प्रदान की गई, जबकि ऐसी नियुक्तियों में निर्धारित प्रक्रिया एवं दस्तावेजी पुष्टिकरण आवश्यक होता है।
स्थानीय कर्मचारी सूत्रों का यह भी कहना है कि निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल द्वारा थर्ड एवं फोर्थ ग्रेड के कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हुए सख्ती तो दिखाई गई, लेकिन उपायुक्त महेंद्र साहू जैसे वरिष्ठ अधिकारियों पर जांच की कोई प्रक्रिया अब तक प्रारंभ नहीं की गई है। उलटे उन्हें निगम के महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार सौंप दिया गया है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल इस संवेदनशील प्रकरण में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित कर सकेंगे? क्या उपायुक्त महेंद्र साहू की भूमिका की भी स्वतंत्र जांच होगी या कार्रवाई केवल निम्न वर्गीय कर्मचारियों तक सीमित रहेगी?
इस पूरे मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए निगम में निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्यायसंगत निर्णय की आवश्यकता महसूस की जा रही है। कर्मचारी संगठनों के साथ-साथ आम जनता भी इस ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है कि इस बार कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा, जिससे निगम प्रशासन में विश्वास बहाल हो सके।