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जनता के हिस्से का विकास गया अवैध कॉलोनियों के हवाले..?

अवैध प्लाटिंग पर मौन क्यों..? क्या शहरी सरकार ने विकास को गिरवी रख दिया है?
महापौर अलका बाघमार की चुप्पी बनी सवालों का कारण, कसारीडीह और रामनगर में बेलगाम प्लाटिंग

तहलका न्यूज दुर्ग// चार महीने पहले जनता ने एक उम्मीद के साथ शहरी सरकार को चुना था, विकास, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख की उम्मीद। लेकिन वक्त ने दिखा दिया कि यह उम्मीदें सिर्फ कागज़ों और होर्डिंग्स तक सीमित रह गईं। नगर निगम की बागडोर संभालने के बाद महापौर अलका बाघमार की कार्यशैली ने यह साबित कर दिया है कि मौन भी एक प्रकार का समर्थन हो सकता है।

जहां एक ओर नगर निगम विज्ञापनों और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी उपलब्धियों के ढोल पीटने में व्यस्त है, वहीं ज़मीनी हालात एकदम उलट हैं। कसारीडीह और रामनगर जैसे क्षेत्रों में खुलेआम अवैध प्लाटिंग का खेल चल रहा है, और हैरत की बात यह है कि नगर प्रशासन की नजरें इस पर या तो बंद हैं या जानबूझकर फेर ली गई हैं।

शहर में अवैध कॉलोनियों की बढ़ती संख्या से ना सिर्फ शहर की योजनाबद्ध विकास प्रक्रिया पटरी से उतर रही है, बल्कि इससे वह बजट और सुविधाएं भी अवैध कॉलोनियों में खप रही हैं, जो असली हकदार, शहर की ईमानदार और करदाता जनता के लिए निर्धारित हैं। सवाल उठता है कि आम नागरिकों के हिस्से का विकास अवैध कॉलोनी में क्यों हो रहा है..?

महापौर अलका बाघमार की चुप्पी और नगर निगम का रवैया यही संकेत दे रहे हैं कि या तो अवैध प्लाटिंग करने वालों को संरक्षण प्राप्त है, या फिर प्रशासन की निष्क्रियता ही इन गतिविधियों की ढाल बन चुकी है। किसी भी भ्रष्टाचार पर कार्यवाही न करना, अपने आप में एक ‘मौन स्वीकृति’ की तरह देखा जा सकता है।

शहर में पहली ही बारिश में सफाई व्यवस्था की असलियत उजागर हो चुकी है। जगह-जगह जलभराव, कचरे के ढेर और दुर्गंध से त्रस्त जनता को अब यह समझ आने लगा है कि महापौर के लिए विकास का मतलब सिर्फ पोस्टरबाज़ी है।

जनता यह नहीं भूली है कि महापौर का चुनाव उसने प्रत्यक्ष प्रणाली से किया है। यह कोई नाम मात्र का पद नहीं, बल्कि जनता के विश्वास का प्रतिनिधित्व है। और जब महापौर ही भ्रष्टाचार पर मौन हो जाएं, तो यह जनता के साथ विश्वासघात से कम नहीं।

आज जब शहर की सड़कों पर अवैध कॉलोनियों के नाम पर योजनाएं चल रही हैं, तब यह सवाल उठना लाजमी है, क्या नगर निगम अब विकास की नहीं, “व्यवस्था के सौदे” की राजनीति कर रहा है?

इस घोर भेदभाव के खिलाफ अब आम जनता की नजरें शहरी सरकार की हर गतिविधि पर टिकी हैं। अगर समय रहते नगर निगम ने इस पर अंकुश नहीं लगाया, तो जनता एक बार फिर सड़कों पर उतरकर जवाब मांगने से पीछे नहीं हटेगी।

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