PMFBY की सच्चाई, फसल बीमा योजना से किसानों को नहीं कंपनी को हो रहा फायदा, शर्तों को हटाने की मांग


प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PM Fasal Bima Yojana) की शुरुआत बहुत अच्छी मंशा के साथ की गई थी. कोशिश थी कि प्राकृतिक आपदा की सूरत में यह किसानों के लिए सुरक्षा कवच बने. लेकिन, क्या फसल नुकसान की समस्या झेल रहे सभी किसानों को यह योजना राहत पहुंचा पा रही है? इस सवाल का जवाब अधिकांश किसान ‘ना’ में देते हैं. वजह यह है कि इस योजना की शर्तें कंपनियों के पक्ष में ज्यादा और किसानों के पक्ष में कम हैं. बीमा कंपनियों की इन्हीं शर्तों के दुष्चक्र में फंसकर किसान परेशान हो रहे हैं.किसान जितना क्लेम करता है या जितना उसका नुकसान होता है उतना मुआवजा कभी नहीं मिलता.
बीमा इंडीविजुअल होता है, हर खेत के लिए किसान अलग प्रीमियम जमा करता है, लेकिन जब क्लेम देने की बारी आती है तो खेत को इंश्योरेंस यूनिट मानने का पैमाना खत्म हो जाता है. क्लेम समूह में आकलन के हिसाब से मिलता है. कुछ फसलों में पटवार मंडल तो कुछ में गांव को एक यूनिट माना जाता है. इस वजह से काफी किसान नुकसान के बावजूद बीमा क्लेम से वंचित रह जाते हैं. किसान संगठन लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि हर खेत में नुकसान का अलग-अलग आकलन होना चाहिए. लेकिन कंपनियां इसे मानने को तैयार नहीं हैं.

इस योजना में एक बड़ी परेशानी कम से कम 33 फीसदी नुकसान होने की शर्त की है. यानी 32.5 फीसदी नुकसान पर मुआवजा नहीं मिलेगा, लेकिन 33.5 फीसदी नुकसान होने पर मुआवजा मिल जाएगा.इसी शर्त को किसान हटाने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि नुकसान तो नुकसान है चाहे वो 5 फीसदी हो या 100 फीसदी. नुकसान के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए.