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रायपुर कालम नगर घड़ी: वृद्धाश्रम के घरों में जागी जंगल का चाहने वालों के बारे में विचार करना जरूरी है

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रायपुर (श्रवण शर्मा)। रायपुर स्तंभ अभद्र टिप्पणी से बवाल

किसी भी धर्म विशेष की एक टिप्पणी करके भावनाओं को आहत करना अच्छी बात नहीं है। कुछ महीने पहले जैन समाज के भिक्षु, साध्वियों की टिप्पणी से प्रदेश भर में बवाल मचा था, धरना प्रदर्शन के बाद गिरफ्तारी हुई और इस तरह का मामला शांत हो गया था। अब सिंधी समाज के इष्टदेव पर टिप्पणी से फिर से भूत आ गए हैं। परिणाम मौन धरना देकर अभिघात की चाह प्रबल हो जाती है। क्या, धर्म विशेष पर ऐसी टिप्पणी पर रोक नहीं लग सकती। यह सवाल आम जनमानस के मन में कौंध रहा है। राजधानी पहुंचे नए शंकराचार्य ने भी अनर्गल मतदाताओं पर चिंता जातेते इंटरनेट पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया। आख़िरी बेहूदा और शेयरधारकों के बयान, गुप्त सामग्री के लिए इंटरनेट पर कूट क्यों नहीं लग सकते। देश के सर्वोधा नेताओं को भी लोग कुछ भी कहते हैं। ऐसे लोगों को विवाद मिले तभी फालतू बयानबाजी बंद होगी, अन्यथा माहौल और सजा बिगड़ेगी।

ग्रामीणों में जागरण का उत्साह

शहर की एक समाजसेवी संस्था ने अलग-अलग वृद्धाश्रम के रोड़ों को एक स्थान पर एकत्रित किया। उद्देश्य था कि अकेलेपन से दब गए दलितों को जंगल में नई दुनिया में जगाएं। उद्देश्य की पूर्ति होने से, वर्षों से परिवार से दूर एकांतमय जीवन जी रहे बुजुर्ग जीवन से निराश हो गए थे, बस जैसे तैसे अपने अंतिम क्षणों का इंतजार करते हुए समय व्यतीत कर रहे थे। जब उन तालाबों को खेल खेले गए, गीत गवाए गए, ठुमके लगवाए गए। युवाओं को उपदेश दिलवाए गए तो रोएदार के चेहरे खिल उठे। कुछ ही घंटों में दारोगा ने अपना बचपन, लड़कपन और खुशी के सारे पलों को याद कर लिया। बीते दिनों की याद करते हुए बुजुर्ग बहुत उत्साहित होकर नाचे कि अपना सारा गम, दुख दर्द भूल गए। बिदाई बेला में युवाओं को गले लगाया और आशीष दिया कि ऐसी खुशी अपने घर में भी बिखेरते रहें। कभी मां बाप, दादी-नानी को न लें।

पिछले पल से सब कुछ लें

एक समाज के सम्मेलन में युवक युवकों ने संबंध संबंधी अंतर्दृष्टि दी। अधिकार जताने वाले इस पर विचार रखते हैं। एक सज्जाद ने गजब की बात कही कि शादी के बाद अपने माता पिता को भूल जाना, वैसा ही आदर करना जैसा अभी करते हो। दो साल में भयंकर दुर्घटना से सब लो कि असली परिवार ही देता है। शक, वह दौर कोई कैसे भूल सकता है जब पड़ोसी भी हाथ मिलाने से जुड़े थे और परिवार के लोग ही सेवा करते थे। पिछले दिनों से सब लेकर अपने परिवार का ध्यान रखें, एक दूसरे के सहभागी बनेंगे। कभी परिवार को बीच में नहीं छोड़ें। पति, पत्नी ही परिवार की रीढ़ हैं। वे खुश रहेंगे तो पूरा परिवार खुश रहेगा। ऐसी भावुक अपील जहां रोमांटिक आंखें नम हो गई सुनकर वहीं युवा भी सोचने को मजबूर हो गए कि प्रत्यक्ष परिवार से बढ़ा कोई नहीं है।

रैली, शोभायात्रा से हलकान सिटीवासी

आए दिन किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर आंदोलन करने के लिए यहां देखें। मंदिरों में देवियों वाली, गुरुओं के जन्मोत्सवों पर शनिवार शोभायात्रा में हजारों लोग शामिल होते हैं। हाथी, घोड़ा, ऊंट, पालकी को शामिल करना राजशाही ग्लैमर समझते हैं। आधी रात तक बैंड बाजा, डीजे के साथ दरगाह में शीट चढ़ाने का प्रसारण किया जाता है। शहरवासियों को शोभायात्रा से कोई द्वेष नहीं है, लेकिन अधिकांश चाहते हैं कि ऐसी यात्रा रविवार को निकले ताकि शहर की यातायात व्यवस्था न बिगड़े। छुट्टी का दिन होने से बाजार में भीड़ नहीं रहती। ऐसे में किसी को परेशानी नहीं होगी। सप्ताह के शेष छह दिनों में जब रैलियां चढ़ती हैं तो लोग घंटों तक ट्रैफिक से जूझते रहते हैं। आम लोगों का मानना ​​है कि प्रशासन यदि आशंका में भंग न दे इसलिए व्यवस्था खराब हो सकती है। नहीं तो भविष्य में और भी बुरी हालत हो जाएगी।

के द्वारा प्रकाशित किया गया: विनीता सिन्हा

नईदुनिया लोकल
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