आज की आज़ादी हमने कांग्रेस से लड़ कर पायी है: हरीश लुनिया

कवर्धा। जिला भाजपा कार्यालय में आपातकाल पर प्रेसवार्ता में हरीश लुनिया और जिला भाजपा अध्यक्ष अनिल सिंह,देवकुमारी कार्यक्रम प्रभारी,क्रांति गुप्ता महामंत्री, सुरेश दुबे मंत्री, कैलाश चंद्रवंशी प्रदेश उपाध्यक्ष युवा मोर्चा, भुनेश्वर चंद्राकर जिला किसान मोर्चा अध्यक्ष,की उपस्थिति में प्रेस कॉन्फ्रेंस सम्पन्न लिया गया।
जिसमें श्री लुनिया ने बताया कि हम सब जानते हैं कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तब के प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल लगा दिया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था।
आपातकाल की घोषणा होते ही स्वयंसेवकों और तमाम गैरकांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी। हो गयी। उन पर प्रताड़नाओ का सिलसिला सा चल पड़ा। देश भर से लाखों लोग सत्याग्रह करके जेल गए और लाखों लोगों को गिरफ्तार किया गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी भाई देसाई, अटलबिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, के. आर. मलकानी, अरुण जेटली, जॉर्ज फर्नाडिस, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, रामविलास पासवान, शरद यादव, रामबहादुर राय समेत हजारों लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे।
अभी के छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ भाजपा नेता सच्चिदानंद उपासने जी भाइयों समेत जेल में थे। स्व. बद्रीधर दीवान जी समेत सैकड़ों लोगों पर आपातकाल का कहर किस हद तक टूटा था, यह आज इतिहास ही है। उस समय जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उन्हें यह भी नहीं पता था कि आपातकाल कब हटेगा और वो कब रिहा होंगे।
दशकों से हमें ‘सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म जैसे शब्दों से डराने की कोशिश की जाती है। जबकि तथ्य यह है कि ये दोनों शब्द आपातकाल से पहले हमारे संविधान का हिस्सा थे ही नहीं। आपातकाल में जब सारी ताकतें केवल एक व्यक्ति में केन्द्रित कर दी गयी थी, राष्ट्रपति, न्यायपालिका, संसद समेत सभी संवैधानिक निकाय निष्प्रभावी कर दिए गए थे, तब ‘पंथनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ इन दोनों शब्दों को संविधान के प्रस्तावना में चुपके से डाल दिए गए थे।
यह खासकर याद रखना होगा कि आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी को भी बुरी कुचल दिया गया था। मीडिया पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाया गया था। इमरजेंसी लगाने के तुरंत बाद अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, ताकि ज़्यादातर अखबार अगले दिन आपातकाल का समाचार ना छाप सके। आपातकाल के दौरान 3801 अख़बारों को जब्त किया गया। 327 पत्रकारों को मीसा कानून के तहत जेल में बंद कर दिया गया। 290 अख़बारों में
सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए। ब्रिटेन के The Times और The Guardian जैसे कई समाचार पत्रों के 7 संवाददाताओं को भारत से निकाल दिया गया। रॉयटर्स सहित कई विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के टेलीफोन और दूसरी सुविधाएं काट दी गई। 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई। 20 विदेशी पत्रकारों को भारत में एंट्री देने से मना कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ समेत जिन मुट्ठी भर प्रदेशों में कांग्रेस या उसके प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्पित दलों का शासन है, वहां क्या हो रहा है, देख लीजिये महाराष्ट्र में किस तरह से असहमति के कारण अभिनेत्री का घर ढाह दिया जाता है, पत्रकारों के साथ कैसा सलूक होता है। पालघर के साधुओं को भीड़ द्वारा लिंच कर देने की खबर दिखाने के कारण अर्णव गोस्वामी और उनकी टीम के साथ कांग्रेस समर्थित सरकार ने वहां कैसा बर्बर अत्याचार किया, यह उदाहरण सामने है, ये तमाम चीज़े महज संयोग नहीं बल्कि प्रयोग है। यही आपातकाल वाली कांग्रेस की मूल वृत्ति है। आप पश्चिम बंगाल का उदाहरण देख लीजिये। कांग्रेस-कम्युनिस्टों के प्रत्यक्ष समर्थन से चुन कर आयी सरकार सत्ता में आते ही कार्यकर्ताओं द्वारा किस नृशंस तरीके से हत्या, बलात्कार और लूट आदि को अंजाम दे रही है। वास्तव में ऐसे तमाम उदाहरण आपातकाल जैसी मनोवृत्ति के ही हैं।
प्रदेश की कांग्रेस के शासन में आज भी अभिव्यक्ति के अधिकारों पर इतना कड़ा पहरा है, असहमति की आवाजों को ऐसे दबाया जाता है जिसका कोई सानी नहीं है। हाल ही में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में धरना-प्रदर्शनों आदि के लिए ऐसी ऐसी शर्त लाद दी है कि किसी भी संगठन के द्वारा अब तमाम आयोजन बस सरकार की कृपा दृष्टि के मुहताज रहेंगे