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CM भूपेश बघेल ने 17 मुख्यमंत्रियों को लिखा पत्र; कहा-GST क्षतिपूर्ति 10 साल तक जारी रखने की मांग उठाएं

रायपुर । GST क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ राज्यों का एक साझा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू हुई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसकी पहल की है। बघेल ने 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर जीएसटी क्षतिपूर्ति 10 साल तक जारी रखने की मांग उठाने का आग्रह किया है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार को रायपुर में कहा, केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि जून, 2022 के बाद राज्यों को दी जाने वाली जीएसटी की क्षतिपूर्ति बंद कर दी जाएगी। इससे उत्पादक राज्यों को राजस्व की भारी हानि होगी। केंद्रीय बजट से पहले भी हमने केंद्र से जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी रखने या वैकल्पिक व्यवस्था बनाने का आग्रह किया था, लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि मैंने 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार से क्षतिपूर्ति दस वर्ष तक जारी रखने के लिए साझा आग्रह किया जाए। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजा है उनमें ओडिशा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखंड, राजस्थान, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, हैदराबाद, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और दिल्ली शामिल हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विश्वास जताया कि राज्य उनकी बात से सहमत होंगे और एक साथ इस मुद्दे पर केंद्र से सहमति का साझा अनुरोध करेंगे।CM ने बताया कि हमने वैकल्पिक व्यवस्था बनाने का आग्रह किया था, लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है।

इस तरह के नुकसान की आशंका जताई

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे मैन्युफैक्चरिंग राज्यों के लिए जीएसटी क्षतिपूर्ति नहीं मिलना एक बड़ा वित्तीय नुकसान होगा। वि-निर्माण राज्य होने के नाते, देश की अर्थव्यवस्था के विकास में हमारा योगदान उन राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है, जिन्हें वस्तुओं और सेवाओं की अधिक खपत के कारण जीएसटी शासन से लाभ हुआ है। यदि जीएसटी क्षतिपूर्ति जून 2022 से आगे जारी नहीं रखा गया, तो छत्तीसगढ़ भारी राजस्व नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। आगामी वित्तीय वर्ष में लगभग पांच हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है। ठीक इसी तरह दूसरे राज्यों को भो आगामी वित्तीय वर्ष में राजस्व प्राप्तियां कम होंगी और राज्यों को इस समस्या से जनहित के कार्यों और विकास कार्यों के लिए पैसों की व्यवस्था करना बहुत कठिन हो जाएगा।

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