सोनवाही का सागौन लूटा गया, विभाग देखता रहा : खंडन के बावजूद सामने आई सच्चाई; सालो से चल रही थी संगठित तस्करी, अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध

पृष्ठभूमि: जंगल की गोद में पलता अपराध
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित झलमला अभयारण क्षेत्र के समीप सोनवाही के मचियाकोना बीट क्रमांक 169 में पिछले तीन वर्षों से चल रही अवैध इमारती लकड़ी कटाई का खुलासा हुआ है। यह वही इलाका है जिसे जैव विविधता और कीमती वृक्षों की संपन्नता के लिए जाना जाता है — खासकर सागौन (Teak/सैगोन) के लिए।
यह बीट एक प्रतिबंधित सेंचुरी क्षेत्र में आता है, जहां किसी भी प्रकार की वनों की कटाई पर पूर्णतः रोक है। बावजूद इसके, यहाँ सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई बड़े पैमाने पर जारी रही — बिना किसी रोकटोक के।
कीमती जंगल, लेकिन लाचार निगरानी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह संगठित अपराध पिछले तीन वर्षों से चल रहा था। स्थानीय सूत्रों ने बताया कि सागौन के पेड़ों को काटकर सिलपट तैयार किए जाते थे, जिन्हें आसपास के जिलों और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में ऊंची कीमतों पर बेचा जा रहा था।
हैरानी की बात यह है कि यह बीट वन परिक्षेत्र रेंजर के गृहग्राम से मात्र कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके बावजूद इस स्तर की अवैध गतिविधियों का लंबे समय तक उजागर न होना, वन विभाग की निष्क्रियता, लापरवाही या संभावित मिलीभगत की ओर इशारा करता है।

विभाग की नींद खुली, पर देर से
इस मामले की जानकारी सार्वजनिक होते ही वनमंडलाधिकारी (DFO) अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। निरीक्षण में भारी मात्रा में कटे हुए सागौन वृक्षों के अवशेष, तैयार लकड़ी के सिलपट, और कुछ अधकटे वृक्ष भी मिले। कुछ स्थानों पर तो हाल में की गई कटाई के ताज़ा निशान भी मिले।
वनमंडलाधिकारी ने मौके पर मौजूद अवशेषों को सील करने और विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि, इस घटनाक्रम के बाद स्थानीय अधिकारियों की भूमिका को लेकर जांच की माँग जोर पकड़ने लगी है।
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पर्यावरणीय क्षति: जंगल के साथ-साथ वन्यजीवन भी संकट में
सोनवाही क्षेत्र सिर्फ पेड़ों की संपत्ति नहीं है, यह शेर, तेंदुआ, भालू, हिरण, जंगली सुअर और कई प्रकार के पक्षियों का भी प्राकृतिक निवास स्थल है। सागौन के वृक्ष न केवल आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान हैं, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार की अवैध कटाई से जंगल की रीढ़ टूटती है — और इसके प्रभाव दशकों तक देखने को मिल सकते हैं। इससे क्षेत्र के तापमान, जल स्रोत, और वन्य जीवन पर दीर्घकालिक नकारात्मक असर पड़ेगा।
सरकार और प्रशासन से बड़े सवाल
1. इतने वर्षों तक बीट की नियमित गश्त क्यों नहीं हुई?
2. हर साल वन कटाई का सर्वे किया जाता है, तो इस गिरावट पर किसी की नजर क्यों नहीं गई?
3. क्या इस तस्करी से स्थानीय अधिकारी आर्थिक लाभ उठा रहे थे?
4. क्या अब भी विभाग स्वतः कार्रवाई करेगा या जनदबाव की प्रतीक्षा करेगा?
अब आगे क्या?
वन विभाग ने प्रारंभिक जांच के आदेश दिए हैं और बीट प्रभारी तथा गार्ड से पूछताछ की जा रही है। लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं को डर है कि यह मामला भी अन्य चर्चित वन घोटालों की तरह धीरे-धीरे फाइलों में दफ्न हो जाएगा।
राज्य सरकार यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाती, तो यह न केवल जंगलों के लिए घातक होगा, बल्कि भविष्य में विभागीय अपराधियों को और अधिक बल मिलेगा।
समाप्ति, लेकिन सवाल बाकी हैं…
सोनवाही जंगल की यह घटना सिर्फ एक बीट की नहीं, बल्कि पूरे वन प्रशासन तंत्र की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह है। यह समय है जब जंगलों की सुरक्षा को सिर्फ “फॉर्मैलिटी” मानने के बजाय, उसे राष्ट्रिय सुरक्षा जैसे महत्व से देखा जाए।
वरना अगली पीढ़ी केवल किताबों में पढ़ेगी कि एक समय छत्तीसगढ़ के जंगलों में सागौन के पेड़ हुआ करते थे।