प्रदेश का सैला लोक नृत्य है, परम्पराओ को जीवित रखने और खुशी जाहिर करने का अच्छा जरिया
प्रदेश का सैला लोक नृत्य है, परम्पराओ को जीवित रखने और खुशी जाहिर करने का अच्छा जरिया
तहलका न्यूज़ बस्तर// लोक परम्पराओ मे हम अपने त्योहारो के असली स्वरूप को जीते और महसूस कर पाते है, कोई भी त्योहार हो, उसमे गीत संगीत तो शुमार होगा ही और ये सबसे ज्यादा आदिवासी इलाको मे देखने को मिलता है। जहां भले ही भौतिक साधनो की कमी हो पर जीवन का असल सुख वे अपनी परम्पराओ मे ढूंढ लेते है। नृत्य, संगीत और रंग-बिरंगे परिधानों से ये अपनी ऊर्जा और उत्साह को बरकरार रखते है, इनमे से अधिकतर ने पोथिया तो नहीं पढ़ी लेकीन जीवन का असल सार जीवनशैली के जरिये लोगो को समझा जाता है।
सैला नृत्य छत्तीसगढ़ मे गोंड जनजाति के लोग नृत्य और संगीत के शौकीन है और यह नृत्य आंचलिक जनजाति जनजीवन का एक जरूरी हिस्सा है ग्रामीण इलाको के ज़्यादातर त्योहार फसलों से जुड़े होते है, इनकी कटाई के बाद ईश्वर को धन्यवान कहने के लिए गीत संगीत से बेहतर कोई माध्यम नही। जब अनाज घर मे आ जाता है और मेहनत के रंग खेतो से होकर घर के आँगन मे बिखरने लगता है तो चारो तरफ हर्ष उल्लास का माहौल होता है ऐसे मे गीत खुद-ब-खुद मुह से निकलता है, ये जिंदगी रहेला चार दिन….. मतलब छोटी सी ज़िंदगानी है क्यू न इसे हंस खेलकर बिताई जाए। सैला नृत्य मे कलाकारो के लाल पीले कुर्ते साड़िया काली जैकेट और धोती से एक खुशनुमा तस्वीर नजर आती है। ढ़ोल, टिमकी और गुदुम वाद्य यत्रों से निकलती ध्वनियों पर उल्लास मे थिरकते पैरो को मानो सारे जहां की खुशिया मिल गयी हो।