चित्रकूट में रहस्यमई किले का हुआ खुलासा, इस किले से सैलानी अभी तक थे अनभिज्ञ

तहलका न्यूज जगदलपुर// चित्रकोट के पास इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम के ऊपर करीब एक हजार साल पुराना किला है। जिस पर कभी कुख्यात छिंदक राजा मधुरांतक का कब्जा था। किले के भीतर भगवान विष्णु, लज्जागौरी, जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की दुर्लभ प्रतिमा, पुराने महल के भग्नावशेष है, किंतु जानकारी के अभाव में चित्रकोट आने वाले लाखों सैलानी इस पुरातात्विक स्थल को देख नहीं पा रहे हैं। इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम स्थल को चोंडीघाट कहा जाता है। दोनों नदियों के मध्य लगभग 11वीं शताब्दी में निर्मित पुराना किला है। किले की दीवार पर जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दुर्लभ प्रतिमा है। जिसे ग्रामीण विष्णु भगवान के रूप में पूजते हैं, वहीं विष्णु प्रतिमा को लोहरीन माता कहते हैं। पास ही पुराने महल और मंदिर का भग्नावशेष है। यहीं पर लज्जागौरी की दुर्लभ प्रतिमा भी है। इस प्रक्षेत्र को बोदरागढ़ कहा जाता है। किला के भीतर माता मावली प्रतिमा के अलावा पुराने पत्थरों की ऊंची और लंबी कतार हैं। नदी किनारे एक विशाल चट्टान की खड़ा किया गया है। जिसे गांव वाले हाथीबांधा कहते है।
संगम में नौकायन और अस्थि विसर्जन भी
बताते चलें कि इंद्रावती और नारंगी संगम के पास ही आंजर नाला भी आकर मिलता है। यह स्थल तीन जल धाराओं का प्रत्यक्ष संगम है। सैकड़ों लोग इस पवित्र संगम में अपने परिजनों की अस्थियां विसर्जित करते हैं। बड़ी संख्या में लोग यहां नौकायन करने भी पहुंचते हैं।
960 साल पहले कब्जा
इतिहासकार बताते हैं कि वर्ष 1064 ई. के आसपास नाग वंशीय नरेश जगदेव भूषण धारावर्ष की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के पूर्व ही इस किले पर कुख्यात नागवंशी नरेश मधुररांतक देव ने 5 अक्टूबर 1065 को अधिकार कर लिया था। तब यह मधुरांतक क्षेत्र मधुरमंडल के नाम से चर्चित था। जिसे आजकल बोदरागढ़ कहा जाता है।
बेटा मरा तब किला छोड़ा
जनश्रुति है कि मधुरांतक देव के पुत्र की आकस्मिक मौत के बाद उसने बोदरागढ़ छोड़ दिया था। इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम पर स्थित बोदर गढ़ आज भी मधुरंतक देव के आतंकी कथा बया करता है। त हो कि चित्रकोट जल प्रपात इलाके के 12 ज्ञात के दायरे में 20 से ज्यादा दर्शनीय स्थल हैं, किया प्रचार प्रसार के अभाव में लाखों सैलानी बस चित्रकोट जलप्रपात ही देख कर लौट जाते हैं।