छतीसगढ़ में शुरू हो चुकी है थैलेसीमिया बाल सेवा योजना! जानिए क्या ये थैलेसीमिया?

तहलका न्यूज जगदलपुर// थैलेसीमिया एक लाइलाज बीमारी है, इससे पीड़ित बच्चों के शरीर में नया खून नहीं बनता। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को बार-बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है। ऐसे बच्चों को अब जिंदगी भर के दर्द से नहीं गुजरना पड़ेगा। अब छत्तीसगढ़ में एक आवेदन से बच्चों का बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन करवाया जा सकता है। बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन का 10 लाख रुपए तक का खर्च नेशनल हेल्थ मिशन के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय व कोल इंडिया लिमिटेड संयुक्त रूप से देगा। खर्च थैलेसीमिया बाल सेवा योजना के तहत सीधे अस्पताल को मिलेगा।
ज्ञात हो कि चिकित्सा जगत में बोन मैरो ट्रांसप्लांट से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के जीवन की राह आसान हुआ है। इस सुविधा के आने के बाद पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह जीवन यापन कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान में यह सुविधा बस्तर और छतीसगढ़ के किसी भी सरकारी अस्पताल में नहीं है। यहीं काफी खर्चीला है। इसके लिए मरीजों को दूसरे राज्य के प्राइवेट – अस्पतालों में जाना पड़ता है। हालांकि, बोन मैरो से थैलेसीमिया के इलाज की सुविधा के लिए सरकार ने बाल सुरक्षा योजना शुरू कर दी है। इस योजना के तहत भारत सरकार की सीएसआर मद से कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा 10 लाख रूपये की सहायता राशि दी जाएगी।
क्या है बोन मेरो ट्रांसप्लांट
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ और मेकॉज अधीक्षक डॉ अनुरूप साहू ने बताया कि बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन (बीएमटी) या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक प्रक्रिया है, जिसमें रोग ग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मेरो के स्थान पर एक स्वस्थ रक्त उत्पादक बोन मेरो को प्रतिस्थापित किया जाता है। इसकी आवश्यकता तब पड़ती है, जब आपकी बोन मेरो ठीक तरह से काम करना बंद कर दे और पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओं का उत्पादन ना करे। बोन मेरो ट्रांसप्लांट दो तरह से होता है, एक तो जिसे बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया जाना है, उसी के अपने शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर उनका प्रत्यारोपण और दूसरा किसी दूसरे के शरीर से रक्त कणिकाएं लेकर उनका प्रत्यारोपण। पहले प्रकार को आटोलोगस ट्रांसप्लांट और दूसरे प्रकार को एलोजेनिक ट्रांसप्लांट कहते हैं।
बस्तर में 50 से अधिक बच्चे जूझ रहे इस बीमारी से
एक जानकारी के अनुसार बस्तर में करीब 50 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे हैं। जिन्हें हर साल करीब 600 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। हालांकि सूत्रों की मानें तो प्रदेश में करीब पांच हजार से अधिक बच्चे ऐसे हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे में विशेषज्ञ कहते हैं, कि सभी लोग आगे आकर रक्तदान करेंगे तो इन बच्चों की जिंदगी बचायी जा सकती है, लेकिन बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद खून की जरूरत नहीं पड़ती है।