हिंदू राष्ट्र हमें नहीं चाहिए. हिन्दू राष्ट्र कंस का भी था, और रावण का भी था, हिन्दू राष्ट्र को लेकर बड़ा बयान
रायपुर। 17 दिवसीय प्रवास पर रायपुर पहुंचे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने मीडिया से चर्चा में कहा कि हिंदू राष्ट्र की हमारी कोई माँग नहीं है, जो हिंदू राष्ट्र के बात कर रहे हो, कोई प्रारूप सामने नहीं रखे हैं. जब पता ही नहीं है कि हिंदू राष्ट्र से क्या होगा तो हम समर्थन कैसे देंगे. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हिन्दू बहुमत में हैं, उसके बाद भी ऐसी परिस्थितियां पैदा हो रही है कि हिन्दुओं को लेकर एडवाइजरी जारी करनी पड़ रही है. ऐसी स्थिति क्यों कर बन रही है, इस पर विचार करना होगा
उन्होंने कहा कि धारा 30 रोक रही है. धर्म के बारे में नहीं जानते हैं. कारण है कि लोग संस्कृत नहीं जानते. ऐसे में कुछ पंडितों पर निर्भर हैं, लेकिन कुछ को छोड़ दें तो सभी अधकचरे हैं. जो भागवत, पुराण लोग सुनते हैं, उतने ही धर्म को जानते हैं. हिन्दू-हिन्दू को बाँटने की कोशिश की गई. गलत तरीके से व्याख्या करके हिन्दुओं को बाँटने की कोशिश की गई. यह ग़लत है. ये राजनीति का स्वरूप है. राजनीति करने वाले तय नहीं करेंगे, कौन किस धर्म का पालन करेगा
राजनीति का हिडन एजेंडा होता है, दिखाते कुछ और हैं, और करते कुछ और है. हमारी पद्धति धर्म की पद्धति प्रत्यक्ष है, पारदर्शी है, हम सभी राजनीति से नहीं जुड़े हैं. हमारा हिडन ना एजेंडा है ना किसी का साथ नहीं शत्रुता है. महात्मा और दुरात्मा- धर्म कर्म मन वचन से जो सोचे वहीं बोलो वहीं महात्मा है, जो सोचता है दूसरा करता दूसरा बोलता है वह दुरात्मा है
साईं के मामले में बागेश्वर धाम से कही गई बातों का समर्थन करते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि उन्होंने जो बात कही है, धर्म की बात कही है. तर्कसंगत कही है, युक्तिपूर्वक की है, सही बात कही है, और जो धर्माचार्य के आदेश का पालन ना कर रहे वो गलती कर रहे हैं.
आदिवासी हिंदू हम हमेशा से महादेव की पूजा-अर्चना करते हैं, जैसे हम बेल पत्र पूजा करते हैं, वो भी पूजा करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया कि बहुसंख्यक धर्म की शिक्षा बैन क्यों है? मुसलमान मस्जिद में मुस्लिम धर्म की शिक्षा दे सकता है, कॉन्वेंट में ईसाई धर्म की शिक्षा दे सकता है, तो फिर हिंदू के स्कूल में हिन्दू धर्म को क्यों नहीं
शंकराचार्य ने कहा कि एक बार फिर हम छत्तीसगढ़ आए हैं, यहाँ आने पर हमारे मन में एक संकल्प जागा. यहाँ के लोग पुराण प्रेमी है गाँव-गाँव में पुराण को श्रावण करते है. 18 पुराण और 18 उप पुराण है. इस तरह 36 पुराण का ख्याति है, तो हमने सोचा क्यों ना 36 पुराण का वाचन हो इसका कीर्ति छत्तीसगढ़ को मिलेगा पहले 36 गढ़ थे, इसलिए छत्तीसगढ़ का नाम पढ़ा था. दो भागवत का वाचन हो गया है, दो अभी होगा. स्वाभाविक है छत्तीसगढ़ में वाचन के लिए बार-बार आना होगा