देश का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S हुआ लॉन्च, भारत में रॉकेट्री का नया युग शुरु
भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S आज श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 11:30 बजे लॉन्च किया गया. सिंगल स्टेज वाले इस रॉकेट को इंडियन स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस ने बनाया है. ये एक तरह का डेमोंसट्रेशन मिशन था. जिसको तीन पेलोड को साथ लॉन्च किया गया है. रॉकेट ने 5 मिनट से भी कम के फ्लाइट टाइम में 89.5 किमी. के पीक एल्टीट्यूड को अचीव किया फिर समुद्र में स्पैल्शडाउन हुआ. इस रॉकेट की लॉन्चिंग के साथ ही देश में एक नये युग का आगाज हो गया है. इस मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया है. ये देश की स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री को नई ऊंचाइयां देगा.
रॉकेट का नाम ‘विक्रम-एस’ भारत के महान वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि यह भारत में निजी क्षेत्र के लिए बड़ी छलांग है. उन्होंने स्काईरूट को रॉकेट के प्रक्षेपण के लिए अधिकृत की जाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनने पर बधाई दी है. केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत इसरो के दिशानिर्देशों के तहत श्रीहरिकोटा से ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ के विकसित पहले निजी रॉकेट का प्रक्षेपण करके इतिहास रचने का काम कर रहा है.
INSPACe के अध्यक्ष पवन कुमार गोयनका ने कहा कि यह भारत के निजी क्षेत्र के लिए नई शुरूआत है जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में कदम रखने जा रहे हैं और एक ऐतिहासिक क्षण हैं. वहीं, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह भारत के स्पेस इकोसिस्टम को विकसित करने के लिए एक बड़ा कदम है और विश्व समूह के समुदाय में एक सीमावर्ती राष्ट्र के रूप में भी उभर रहा है. यह भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ है
निजी कंपनियों के आने से कॉमर्शियल लॉन्चिंग सस्ती हो जाएगी. इसके पीछे वजह ये है कि स्काईरूट एयरोस्पेस का रॉकेट Vikram-S पूरी तरह से कंपोजिट कार्बन से बना है. यानी इसमें धातु का उपयोग कम किया गया है. जो कि सस्ता पड़ता है. इसके अलावा क्रायोजेनिक इंजन भी थ्रीडी प्रिंटेड है. यानी इसके निर्माण की लागत भी कम हो गई. इसके ईंधन को भी बदला गया है. इसमें आम रॉकेट ईंधन के बजाय LNG यानी लिक्विड नेचुरल गैस और लिक्विड ऑक्सीजन (LoX) की मदद ली गई है. यह किफायती और प्रदूषण मुक्त होता है. इस हिसाब से निजी कंपनियों के लॉन्च 30 से 40 फीसदी सस्ते हो जाएंगे.
ISRO मे साइंटिस्ट रहे पवन कुमार चंदना को रॉकेटरी का चस्का उस समय लगा था जब वो IIT खड़गपुर में थे. यहां वो मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे. IIT के बाद चंदना ने ISRO जॉइन कर लिया. चंदना ने ISRO में 6 साल काम किया. वो केरल के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में तैनात थे. ISRO में ही चंदना की मुलाकात एक अन्य IITian नागा भरत डका से हुई. दोनों ने एक-दूसरे के सपनों को समझा और नौकरी छोड़ दी. 2018 में दोनों ने मिलकर स्काईरूट एयरोस्पेस की शुरुआत की.