भोरमदेव मंदिर के शिखर का रंग पूरी तरह से काला पड़ चुका है , काई और पौधे भी उग आए है
कवर्धा: 11वीं सदी में निर्मित भोरमदेव मंदिर की नींव और शिखर का रंग पूरी तरह से काला पड़ चुका है। शिखर पर कई जगह पौधे उग आए हैं। छेरकी महल के आसपास धान व गन्ने की खेती हो रही है, जबकि यह प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है।
हाल ही में भोरमदेव मंदिर के मेंटनेंस कार्य शुरू हुआ ही था कि ये विवादों में पड़ गया। क्योंकि संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के इंजीनियर की अनुपस्थिति में ही ठेकेदार ने मंदिर के नींव को खोदना शुरू कर दिया। मामला सामने आने पर आनन- फानन में खुदाई बंद कराई गई। वहीं खोदे गए नींव में दोबारा मिट्टी पटवा दिया। इस लापरवाही ने करीब 1 हजार साल पुराने भोरमदेव मंदिर पर खतरा बढ़ा दिया है। लगातार शिकायतों के बाद भोरमदेव के मेंटेनेंस के लिए 37.33 लाख व केमिकल ट्रीटमेंट (रासायनिक संरक्षण कार्य) के लिए 16.19 लाख जारी हुआ था।
1. भोरमदेव मंदिर : 11वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। यह मंदिर छत्तीसगढ़ का खजुराहो नाम से विख्यात है। 24 अगस्त 1979 को यह मंदिर राज्य संरक्षित घोषित हुआ था।
वर्तमान स्थिति : नींव व शिखर काला पड़ा, काई जमी वर्षों से भोरमदेव मंदिर के मेंटेनेंस में लापरवाही बरती गई। इस कारण मंदिर की नींव व शिखर का रंग काला पड़ चुका है। मंदिर के शिखर पर कहीं-कहीं पौधे उग आए हैं। दीवारों पर पत्थरों के बीच गैप बढ़ गया है। बारिश होने पर गर्भगृह के भीतर 16 जगहों से पानी का रिसाव होता है।
2. मण्डवा महल : मण्डवा महल 16 स्तंभों पर आधारित है। मंदिर का गर्भगृह मंडप के धरातल से डेढ़ मीटर गहरा है। इस मंदिर को 15वीं सदी में बनवाया गया था। 13 जुलाई 1984 को यह राज्य संरक्षित घोषित हुआ था।
वर्तमान स्थिति: मण्डवा महल के बाहरी दीवारों पर कई प्रतिमाएं थी, जो गायब हो चुकी है। यूं तो मण्डवा महल में 16 स्तंभ होना चाहिए था, लेकिन यहां सिर्फ 15 ही हैं। पूर्व में वर्षों में मंडप और गर्भगृह की दीवारों का जीर्णोद्धार कराया गया था, जिसके चलते इसकी स्थिति कुछ ठीक है।
3. छेरकी महल : यह भी शिव मंदिर ही है। फणि नागवंशीय राजा ने इस मंदिर का निर्माण लगभग 14वीं ईस्वी में कराया था, जो शिव को समर्पित है। 13 जुलाई 1984 को इसे राज्य संरक्षित घोषित किया गया था।
वर्तमान स्थिति : छेरकी महल के शिखर व दीवारों पर कई जगह घास व पौधे उग आए हैं। पुरातत्व अधिनियम 2010 के संशोधित अधिनियम में राज्य संरक्षित स्थल के आसपास 100 मीटर संरक्षित क्षेत्र और 200 मीटर प्रतिबंधित क्षेत्र है। लेकिन 50 मीटर के बाद गन्ना व धान की खेती हो रही है। कुछेक फार्म हाउस भी बन गए हैं