छत्तीसगढ़ स्पेशलरायपुर जिला

देखिए क्यों है छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया , दिलचस्प है 36 गढ़ों की कहानी

इस प्रदेश के शहरों ने विकास को कैसे अपनाया पुरानी और नई तस्वीरें से समझा रहे हैं, 36 गढ़ों की दिलचस्प कहानी एतिहासिक फैक्ट के साथ बता रहे हैं। जब छत्तीसगढ़ बना यहां 16 जिले थे। बाद में नारायणपुर और बीजापुर को नए जिलों का दर्जा मिला। साल 2012 में छत्तीसगढ़ राज्य में 9 और नवीनतम जिले शामिल किए गए। जिनके नाम सुकमा, कोंडा गांव, बालोद, बेमेतरा, बलोदा बाजार, गरियाबंद, मुंगेली, सूरजपुर और बलरामपुर है।

आज छत्तीसगढ़ राज्य में अब कुल 33 प्रशासनिक जिले मौजूद हैं। साल 2020 में 10 अगस्त के दिन गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का गठन किया गया था और साल 2021 में 15 अगस्त के दिन मनेंद्रगढ़, मानपुर मोहला, शक्ति और सारंगढ़-बिलाईगढ़ जैसे जिलों को राज्य में शामिल करने की घोषणा की गई।

ऊपर तस्वीर में शपथ ले रहे हैं छत्तीसगढ़ के पहले CM अजीत जोगी और उन्हें शपथ दिला रहे हैं दिनेश नंदन सहाय, यह छत्तीसगढ़ के पहले राज्यपाल रहे जिनका कार्यकाल 1 नवम्बर सन 2000 से 1 जून सन 2003 तक रहा । इसके बाद सन् 2003 में दिनेश नंदन सहाय त्रिपुरा के राज्यपाल नियुक्त किए गए। लम्बी बिमारी के दौरान 29 जनवरी 2018 को लंबी बिमारी के दौरान उनका निधन हो गया। CM अजीत जोगी गरीबी में पले, रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर बने, IPS बने फिर IAS भी बने। राजीव गांधी जब कभी बतौर पायलट रायपुर आते थे शहर के कलेक्टर अजीत जोगी से मिलते थे। इसी दोस्ती की वजह से जोगी राजनीति में आए थे।

छत्तीसगढ़ियों का प्रभाव दशकों से दिल्ली की सियासत में रहा है। ये तस्वीर 1957 की है, जब विद्याचरण शुक्ल पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की और उन्हें बताया कि वे मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ के हिस्से में आने वाले रायपुर से हैं। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक नेहरू ने कक्काजी (पं. रविशंकर शुक्ल) का उल्लेख करते हुए कहा कि वे रायपुर को जानते हैं। इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं, तब शुक्ल उनके बेहद करीबी थे। शुक्ल के बाद से अब तक सरकार जिसकी भी हो, लेकिन दिल्ली में छत्तीसगढ़ की लगातार बराबरी रही है।

स्वतंत्रता सेनानी डॉ. खूबचंद बघेल ने डॉक्टरी की नौकरी छोड़कर देश की आजादी में गांधी जी के आह्वान पर योगदान दिया था। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के आंदोलन के लिए 1967 से 69 तक आंदोलन का अलख जगाया। इसी का असर है कि आज करोड़ों लोग खुद को छत्तीसगढ़िया बताते हैं। सन 2000 में चुनावों के बाद देश के PM अटल बिहारी ने प्रदेश का गठन किया और प्रदेश अस्तित्व में आया।

वरिष्ठ पत्रकार बसंत तिवारी की किताब में इतिहासकार कनिंघम की बातों का जिक्र मिलता है। इसके मुताबिक कलचुरी वंश के चेदीराजा यहां के मूल निवासी थे। इस क्षेत्र का नाम चेदिदेश हुआ करता था। छत्तीसगढ़ राज्य के आंदोलन से जुड़ी छत्तीसगढ़ समाज पार्टी कि किताब में भी राज्य के नाम का जिक्र है। इस किताब के मुताबिक 15वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ नाम बोला-सुना जाने लगा था। छत्तीसगढ़ नाम को लेकर कहा गया है कि प्रदेश के 18-18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण में स्थित थे, जिन पर कल्चुरी राजाओं का कब्जा था, इन्हीं की वजह से यह नाम मिला। सन 2000 में जब राज्य का गठन किया गया तब देश को छत्तीसगढ़ 26वें राज्य के रुप में मिला।

अधिकांश इतिहास कारों का मत है कल्‍चुरी राजाओं ने 36 किले बनाए। कुछ का कहना है कि कई गांवों को मिलाकर 36 गढ़ बनाए गए थे। वर्तमान समय में चैतुरगढ़, रतनपुर में किलों के साक्ष्य मौजूद हैं। इतिहास कार रमेंद्र नाथ रायपुर शहर के बूढ़ापारा इलाके में किला होने का दावा करते हैं। हालांकि, 36 में से अधिकांश गढ़ों के अवशेष वर्तमान में नहीं मिलते।

र​​​​​तनपुर राज्‍य के अधीनस्‍थ 18 गढ़ :- रतनपुर, विजयपुर, पंडर भट्टा, पेंड्रा, केन्‍दा, बिलासपुर, खरौद, मदनपुर (चांपा), कोटगढ़, कोसगई (छुरी), लाफागढ़ (चैतुरगढ़), उपरोड़ागढ़, मातिनगढ़, करकट्टी-कंड्री, मारो, नवागढ़, बाफा, सेमरिया। रायपुर के अधीनस्‍थ 18 गढ़ :- रायपुर, सिमगा, ओमेरा, राजिम, फिंगेश्‍वर, लवन, पाटन, दुर्ग, सारधा, सिरसा, अकलबाड़ा, मोहंदी, खल्‍लारी, सिरपुर, सुअरमार, सिंगारपुर, टैंगनागढ़, सिंघनगढ़।

पौराणिक कथाओं और इतिहासकारों के मतों के अनुसार छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कौशल राज्य था, जो भगवान श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। उनकी माता कौश्ल्या यहीं की थीं इसलिए राज्य का नाम भी कोसल प्रदेश या दक्षिण कोसल कहा गया। यहां राम भगवान को भांजा माना जाता है। इसलिए यहां असल में भांजों को पूजा जाता है, रिश्ते में मामा लगने वाले बुजुर्ग भी अपने से छोटे उम्र के भांजे के पैर छूते हैं।

जयस्तंभ चौक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पहचान है। एक दिन में इस चौराहे से 1 लाख से ज्यादा लोगों का ट्रैफिक मूवमेंट होता है। ये शहर के बीचों-बीच का हिस्सा है। रायपुर से किसी भी जगह की दूरी इसी जगह से मापी जाती है।

दो साल पहले जय स्तभ चौक का कायाकल्प किया गया। अब यहां LED स्क्रींस पर शहीदों के वीडियोज चलते हैं। माना जाता है कि गुलाम भारत में अंग्रेजों ने यहां स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े क्रांतिकारियों को सजा इसी चौराहे पर लाकर दी थी। इनमें एक नाम वीर नारायण सिंह का भी है। देश की आजादी के 50 साल होने पर जय स्तंभ जैसे स्मारक देशभर में बने थे।

साल 2000 तक रायपुर में मुंबई और दिल्ली की दो फ्लाइट्स आती थीं। कई बार ये प्लेन एक दो यात्री लेकर ही पहुंचते थे। एयरपोर्ट का लुक भी बाहर से झोपड़ी नुमा था। तब सिर्फ एयर इंडिया की उड़ाने ही यहां से मिला करती थीं।

बाद में प्राइवेट एयरलाइंस भी यहां अपनी फ्लाइट भेजने लगीं। अब रायपुर से हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, समेत दर्जनों बड़े शहरों के लिए फ्लाइट्स मिलती हैं। पिछले एक सप्ताह की बात करें तो रायपुर के एयरपोर्ट पर 56 फ्लाइट्स का आना जाना हुआ, कुल 7232 यात्रियों ने सफर किया। अब प्रदेश के बिलासपुर और जगदलपुर में भी एयरपोर्ट हैं। पहले सिर्फ रायपुर में ही एयरपोर्ट था।

जवाहर बाजार का पुराना लुक राजधानी की प्राचीनता की निशानी था। अब नया लुक आधुनिकता की कहानी कह रहा है। यहां अंग्रेजों के समय अंग्रेज सिपाही और अफसर सामान खरीदने पहुंचे थे। आस-पास की जगहों से यहां बाजार लगाने व्यापारी आते थे। दो साल पहले इसे नए सिरे से तैयार कर दुकानें बनाई गईं।

पुराने रेलवे स्टेशन बदल गया है। देश के हर हिस्से के लिए ट्रेन रायपुर से मिल जाती है। हावड़ा मुंबई रूट पर होने की वजह से दो बड़ी जगहों से रायपुर जुड़ा हुआ है।

सेंट्रल इंडिया के चुनिंदा रेलवे स्टेशन में से रायपुर एक ऐसा रेलवे स्टेशन है। जहां लग्जरी होटल प्लेटफॉर्म पर ही है। देर रात तक सर्विस देने वाले फूड कोर्ट, लिफ्ट, रेस्ट एरिया, टूरिस्ट गाइडेंस यहां मिल जाता है।

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