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आज से शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि शुरू…

आज से शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं। अगले 9 दिनों तक देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की विशेष पूजा-आराधना की जाएगी। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हुए मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा करने का विधान है।

नवरात्रि में देवी आराधना, कलश स्थापना और नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाने का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में हर पूजा-पाठ और शुभ कार्य का आरंभ दीप प्रज्वलित करके किया जाता है। दीप को प्रकाश का द्योतक माना गया है तो वही प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। दीप जलाने का मतलब होता है मन के अंधकार को दूर करके परमात्मा रूपी प्रकाश को अपने अंदर समाहित करना। इसलिए सबसे पहले दीपक प्रज्वलित किया जाता है।

मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। मन विचलित होता हो और आत्मबल में कमी हो तो मां शैलपुत्री की आराधना करने से लाभ मिलता हैं।

नवरात्रि का त्योहार मां शक्ति की आराधना का होता है। नौ दिनों तक देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। दुर्गा पूजा के बड़े-बड़े पांडाल सजाए जाते हैं। नवरात्रि पर नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है और सबसे खास बात नवरात्रि के नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाने की परंपरा होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों नवरात्रि पर अखंड ज्योति जलाते हैं

हिंदू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर देवी दुर्गा नौ दिनों के लिए पृथ्वी पर वास करती हैं। नौ दिनों तक हर दिन देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। क्या आप जानते हैं नवरात्रि पर कलश स्थापना क्यों की जाती हैं.

मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया,सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं,तब वहां जाने के लिए उनका मन व्याकुल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। भगवान शिव ने कहा-”प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं,अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है।ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।”

शंकर जी के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है,दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे।

यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं,उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती,हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।

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