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धान व फलों के छिलके से बनेगा इथेनॉल: भाटिया के शोध को मिला 10 साल का पेटेंट|

इथेनॉल का उपयोग पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों में किया जा रहा है। भविष्य में इसकी उपयाेगिता और भी बढ़ेगी। अभी तक इथेनॉल चावल, गन्ने के शक्कर, ग्लूकोस, शोरा, महुए के फूल, आलू, जौ, मकई आदि खाद्यान्नाें से बन रहा है। अटल यूनिवर्सिटी की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. ललिता भाटिया ने धान के छिलके, ब्रान और फलों के छिलके से इथेनॉल बनाने की प्रक्रिया शुरू की है।

उन्हाेंने बताया कि कोरोना के समय लोगों को खाद्य सामग्रियों के लिए परेशान होते देखा गया, इसी दौरान उनके मन में विचार आया कि हम जो धान के छिलके, ब्रान, फलों के छिलके फेंक देते हैं। इसका कोई उपयोग नहीं होता है। इनसे इथेनॉल बने तो खाद्य सामग्रियों की बचत होगी। ये जरूरतमंदों को मिलेगा और वेस्ट चीजों से इथेनॉल भी बन जाएगा। इस विचार के साथ उन्होंने 5 महीने तक इस पर शोध किया और सफल हुईं। इसके बाद धान व फलों के छिलके इथेनॉल बनाने के फॉर्मूले को पेटेंट कराने के लिए जर्मनी भेजा। जर्मनी से डॉ. भाटिया को धान के हर्ष, ब्रान व फल के छिलके से इथेनॉल बनाने का 10 साल का पेटेंट मिला है।

इस पेटेंट के लिए कुलपति आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने डाॅ. भाटिया को बधाई दी है। अन्य प्राध्यापकों को भी इस तरह से कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

 डॉ. भाटिया ने बताया कि उन्होंने 1 किलो धान के छिलके, ब्रान, फलों के छिलके पर रिसर्च किया। इसके लिए पहले उन्होंने सूक्ष्म जीवों को इष्ट तैयार किया। इष्ट, फंगस और एंजाइंस की मदद से प्रोसेस कर इथेनॉल तैयार की है। इस प्रोसेस में उन्हें 7 सप्ताह का समय लगा। 1 किलो सामग्रियों से 10 ग्राम इथेनाॅल बन पाया।

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