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कवर्धा का एक बार फिर नाम दर्ज हुआ वर्ल्ड गिनीज़ बुक में। जानिए क्यों दर्ज हुआ नाम

जब आप भगवान के हो जाएंगे, तब भागवत जी की तरह आपका आसन ऊंचा हो जाएगा – शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद:

कवर्धा। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’ के दूसरे दिन सुबह भगवान चंद्रमौलेश्वर पूजन पश्चात श्रद्धालुओं की दीक्षा दिया।

श्रीमद्भागवत कथा एवं रुद्रमहायज्ञ को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड


कवर्धा। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के एशिया हेड मनीष विश्नोई ने बताया की श्रीमद्भागवत कथा एवं रुद्रमाहायज्ञ के आयोजक गणेश तिवारी और नेहा तिवारी द्वारा आयोजन को लेकर जो आमत्रंण पत्र (कैलेंडर) बांटा वह 1.13 लाख था जो अकल्पनीय है जिसके कारण गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसे दर्ज कर आयोजक को प्रमाण पत्र देकर बेच लगाकर सम्मान दिया गया है।

शंकराचार्य का धर्मसभा में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का प्रवचन



जब जन्मांतर में पूर्ण होता है तब कहीं भागवत का लाभ मिलता है। भागवत क्या है ? कोई किताब या कोई किताबी भागवत है ऐसी बात नहीं है भागवत शब्द का अर्थ है ‘भगवत: हृदम भगवतम’ जो भगवान का है उसी का नाम है भागवत यह जो पंडाल बना है इसमें सबसे ऊंचे स्थान पर भागवत जी को विराजमान किया गया क्योंकि वह जो पोथी है उसमें भगवान के गुण अनुवाद लिखे हैं भगवान की कथा उसमें अंकित होने के कारण उस पोथी को भागवत जी कहा गया है और सबसे ऊंचे आसन पर बिठाया गया। कितना ही अच्छा हो कि हम और आप भगवान के हो जाए। हम और आप भगवान के हो जाएंगे, तो इसी तरह से हमारा आसन भी ऊंचा हो जाएगा।

जो भगवान का है उसी का नाम है भागवत। चाहे वह कथा हो चाहे वह व्यथा हो। भगवान की होनी चाहिए भगवान से जोड़ने वाला सम्मान पाता है, चाहे वह शत्रु भाव से ही क्यों ना जुड़े। रावण आदि शत्रु भाव से भगवान के सामने आए लेकिन शत्रु भाव से भी जहां जहां राम वहां वहां रावण जहां जहां कृष्ण वहां कंस का नाम हो गया। भगवान से जुड़ने की यह महिमा है। आप तभी तक दु:खी है जब तक भगवान से नहीं जुड़ेंगे, जिस दिन आप भगवान से जुड़ जाएंगे तो उसी समय आप आपके जीवन से दु:ख दरिद्र समाप्त हो जाएगा थोड़े दिन के लिए जब इस तरह के आयोजन होते हैं।

उसमें हम पहुंचते हैं उतने दिन भी क्या हमसे हमारे दुख दूर नहीं होते जो लोग यहां आ कर के बैठे हैं आने वाले दिनों में भी बैठे रहने वाले हैं, जब यह आयोजन पूरा हो जाएगा, तो अपने मन से पूछिएगा, जितने दिन हम भगवान की कथा में जाते थे तो क्या हम दु:खी थे आपको जवाब मिलेगा आपके अंतर्मन से इतने दिन तक हमको हमारा दु:ख भूल गया था। पता ही नहीं था कि हम दुखी भी हैं पता ही नहीं था कि हम चिंतित भी हैं। हमें पता ही नहीं था कि हम दुख के सागर में डूबे हुए हैं। ऐसा लगता है सारी हमारे ह्रदय की कुंठा विकट हो चुकी है ऐसा भगवान का महत्व है और उसी महात्म का ज्ञान भगवान से जुड़ने वालों को हो जाता है।

आप देखिए राजधानी धर्मधानी कब बन जाती है कल हमने कहा था ना यह कवर्धा एक नगर था फिर संतों ने विद्वानों ने पूज्य पुरुषों ने महापुरुषों ने आकर के इसको धर्म धानी बना दिया और अब जब से धर्म ध्वजा यहां लहराई है तो यह धर्म राजधानी हो गया हैं। राजधानियां धर्मधानिया बन जाती है।कैसे बनती है ? परीक्षित भी तो राजा था। अभी आपने सुना महात्म श्रवण के प्रसंग में परीक्षित राजा बने। कोई सामान्य राजा परीक्षित नहीं थे। महाभारत जैसा युद्ध हुआ, जिसमें 18 अक्षर वर्णी सेना समाप्त हो गई और तब जो राजा बना उसका नाम परीक्षित है।

परीक्षित जैसा राजा कोई दूसरा नहीं। शायद माने संभवत: कहने की बात नहीं है। निश्चित रूप से परीक्षित जैसा राजा बना वैसा कोई दूसरा राजा नहीं बना। 18 अक्षर वर्णी सेना मारी गई हो। उसके बाद जिसका राजतिलक हुआ। विजई होकर के उस राजा का महात्म कोई सामान्य हो सकता है। सामान्य राजा थे ही नहीं परीक्षित 1-1 कार्य परीक्षा करके करते थे। इसीलिए उनका नाम परीक्षित था विद्वानों ने भले उनका नाम कुछ और रखा कहते हैं कि जब उनके ज्योतिषी आकर के नाम करण का विचार करने लगे तो उनके जीवन का सबसे बिरहा गुण देख के कि गर्भ में भगवान ने इनकी रक्षा की इसीलिए इनका नाम भगवान से रक्षित होना चाहिए तो नाम रख दिया विष्णु रात।

विष्णु रात माने विष्णु ने जिसकी रक्षा की। नाम ज्योतिषियों के द्वारा इनका विष्णु रात रखा गया, लेकिन अपनी परीक्षा के गुण विशेष के कारण नाम परीक्षित हो गया। जब पालने में थे तभी जो इनके सामने आता उसी को बड़े गौर से देखते थे। पहचानने की कोशिश करते थे कि, जिस ने मेरी गर्भ में रक्षा की क्या यह वही है या कोई और हो इस तरह से जो भी सामने आए उसमें परमात्मा की परीक्षा करने वाले का नाम परीक्षित। परमात्मा तो सबके हृदय में है। लेकिन हम परीक्षा कहां करते हैं हम तो पप्पू, हम तो टिंकू हम तो रिंकू जिसको देखते हैं उसी का एक नाम रखते हैं, लेकिन उसके हृदय में परमात्मा है इस बात का ध्यान हमको कहां रहता है लेकिन परीक्षित का ऐसा नहीं था।

परीक्षित जिसको भी देखते थे आंखें गड़ा देते थे सीधे अपने नेत्रों से उसके हृदय में लेकर जाते थे और वही पर परमात्मा का दर्शन कर लेते थे इसीलिए उनका नाम परीक्षित प्रचलित हो गया और जो घट-घट में परमात्मा को देखें। उसका राज्य होता है, जब हम सामने वाले में परमात्मा को देखते हैं। तब हम से हिंसा नहीं हो सकती। हम अपने शत्रु को मार सकते हैं। अपने देवता को नहीं मार सकते। जब सब में परमात्मा को देखेंगे तो स्वभाविक है सब में हमारी पूज्य बुद्धि, आदर की बुद्धि हो जाएगी, जिसको देखेंगे उसको आदर-सम्मान से बुलाएंगे उसका स्वागत सत्कार करेंगे पूजा-अर्चना करेंगे।

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