कांकेर जिला (उत्तर बस्तर)

यहां फ्लावर नहीं, फायर के बीच हुआ प्रेम:आया अर्जुन आतंक का पाठ पढ़ाने,लक्ष्मी से सीखा प्रेम का सबक;नक्सलवाद रोड़ा बना तो प्रदीप-संगीता ने डाले हथियार

अक्सर हाथों में फ्लावर लेकर प्यार का इजहार होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर की कहानी इससे जुदा है। यहां फायर के बीच भी प्रेम होता है। गोलियां बरसाने वाले नक्सली प्यार में पड़ जाते हैं। फिर बारी आती है नक्सली राह और प्यार में से एक को चुनने की। ऐसी ही कहानी है अर्जुन-लक्ष्मी और प्रदीप-संगीता की। अर्जुन जो लक्ष्मी को आतंक का पाठ पढ़ाने गया था और प्रदीप, जिसके इंतजार ने संगीता को नक्सलवाद छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

आतंक की पढ़ाई में अपनी ही छात्रा को दे बैठा दिल
बीजापुर के गंगलूर निवासी अर्जुन ताती। करीब 12 साल तक नक्सलियों के साथ काम करता रहा। इस दौरान डेढ़ दर्जन से अधिक हत्याएं की। नक्सली संगठन का सक्रिय सदस्य होने के चलते उसकी ड्यूटी उत्तर बस्तर डिवीजन के परतापुर एरिया कमेटी में लगी। वहां उसे नक्सली संगठन में शामिल होने वाले नए सदस्यों को नक्सलवाद का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई। उन्हीं नए सदस्यों में आतंक का पाठ सीखने आई लक्ष्मी पद्दा उसे मिली।

फिर संगठन ने उनको अलग करने का फरमान सुनाया
अर्जुन बताता है कि मार्च 2021 में वह हाथ में बंदूक लिए लक्ष्मी के पास पहुंच गया। उससे प्यार का इजहार किया। लक्ष्मी ने भी मुस्काराते हुए हामी भर दी। पर जल्द ही इसकी भनक संगठन के बड़े नक्सलियों को लग गई। ऐसे में उन्हें सीनियर-जूनियर का फर्क समझाया गया। उनको अलग करने का फरमना भी सुना दिया। यह बात दोनों को ही मंजूर नहीं थी और फिर जून में दोनों वहां से भाग निकले। सरेंडर किया, अब जल्द ही शादी करने वाले हैं।

प्रदीप और संगीता।
प्रदीप और संगीता।

प्रदीप 5 साल तक करता रहा संगीता का इंतजार
ऐसी ही एक प्रेम कहानी है परतापुर की खूंखार नक्सली संगीता और दुर्गकोंदल निवासी नक्सली प्रदीप कवाची की। दोनों अलग-अलग नक्सली संगठन में काम कर रहे थे, लेकिन जब सामना हुआ तो पहली नजर में प्यार हो गया। दोनों के बीच बातें होने लगीं तो संगठन फिर रोड़ा बनकर खड़ा हो गया। इस पर जून 2011 में दोनों ने नक्सलवाद छोड़ शादी का फैसला किया। जुलाई 2011 में प्रदीप ने सरेंडर कर दिया।

फिर शादी के बंधन में बंधे दोनों
वहीं दूसरी ओर संगठन ने संगीता को अबूझमाड़ और दक्षिण बस्तर भेज दिया। वहां पर सालों तक जंगलों में भटकती रही। जबकि प्रदीप उसका इंतजार करता रहा। करीब 5 साल बाद वह मौका आया, जब संगीता के लिए आजादी के रास्ते खुले। उसकी नक्सल टीम परतापुर पहुंची तो अक्टूबर 2016 को मौका मिलते ही संगीता वहां से भाग निकली और सरेंडर कर दिया। इसके बाद प्रदीप के पास आई और दोनों ने मार्च 2021 में सामाजिक रीति रिवाज से शादी कर ली।

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