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‘ख़ातियानी जोहार यात्रा’ का संदेश और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की राजनीतिक बेचैनी

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रायपुर. राजनीति में हमेशा से ही मुड़ा हुआ है। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर चंद्रशेखर की भारत यात्रा और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से लेकर हेमंत सोरेन की ख़ातियानी जोहार यात्रा के भी अपने अलग-अलग राजनीतिक मायने और मतलब हैं। वैसे झारखंड झारखंड के हेमंत सोरेन की ख़ातियानी जोहार यात्रा को देश के अलग-अलग नेताओं की यात्रा से जोड़कर देखना शायद न्याय संगत नहीं होगा. ऐसा इसलिए की हेमंत सोरेन की ख़ातियानी जोहार यात्रा बिना रुके-बिना रुके लगातार मंजिल की ओर बढ़ने वाली यात्रा में शामिल नहीं है।

इसके बावजूद ख़ातियानी जोहार यात्रा की चर्चा प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में हर तरफ हो रही है। हेमंत सोरेन के शब्दों में कहें तो ख़ातियानी का मतलब होता है खुद की पहचान। जो राज्य का गठन 22 साल बाद भी अधूरा और अपारदर्शी था। सरकार ने राज्य में 1932 का खतियान लागू करने का प्रस्ताव विधानसभा से पास कर राज्यपाल के पास भेजा है। आगे नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए इसे केंद्र सरकार को दिया जाएगा।

राज्य में ओबीसी को 27 प्रतिशत सत्यता का प्रस्ताव भी सदन से पास होने के बाद राज्यपाल तक पहुंच गया है। ये भी केंद्र सरकार को भेजा गया है। इससे पहले, सरना धर्म संहिता का प्रस्ताव भी केंद्र के पास पाया गया। हेमंत सोरेन सरकार में गए ये तीन ऐसे फैसले हैं, जिन्हें मास्टर स्टोक्स की संज्ञा दी जा रही है।

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यात्रा का दूसरा चरण

श्री हेमंत सोरेन इसी तीन मुद्दों को लेकर खातियानी जोहार यात्रा पर है। अभी राज्य में यात्रा का दूसरा चरण चल रहा है। हेमंत सोरेन की इस यात्रा में खींची गई – मूल निवासी समाज के लोग का पालने देखें। रात का समय भी बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ और उस भीड़ के द्वारा मोबाइल फोन के फ्लैश लाइट में हेमंत सोरेन की तस्वीर या वीडियो बनाने की काफी कुछ बयां करता है। लोग उन्हें सुनते हैं और देखते हैं क्योंकि इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं। ये बात सच है कि वर्तमान, राज्य में 1932 का खतियान या ओबीसी सत्य का लाभ राज्य की जनता को नहीं मिला है, पर हेमंत सोरेन इस बात का विश्वास दुनिया में सफल साबित हो रहे हैं कि उनकी सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा काम कर दिया है दिया।

इस फैसले से राज्य के स्थानीय युवाओं को दूसरे और चौथे ग्रेड की नौकरी में प्रतिशतता भागीदारी सुनिश्चित होगी। ऐसा सरकार का अहसास है । ओबीसी को 27 प्रतिशत वित्तीय हिस्सेदारी भी झारखंड के कई राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ा रही है। बीजेपी के नेता लगातार ख़ातियानी जोहार यात्रा को लेकर मीडिया में बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन आम जनता के बीच जा कर सरकार के फैसले के खिलाफ बोलने की शक्ति किसी भी नेता के पास नहीं। बीजेपी के अंदर हेमंत सोरेन सरकार के फैसले को लेकर बहस का दौर भी जारी है। दबी जुबां ही सही पर बीजेपी के कई कद्दावर नेता को चुनावी संग्राम पार्टी में होने वाले नुकसान की बात स्वीकार कर रहे हैं।

सोरेन के स्टेक्स, चारों ओर खाने का ध्यान

जानकर ये भी मान लेते हैं कि राजनीति के स्टेक्स खेल कर हेमंत सोरेन ने चारों ओर से विचार कर लिया है। अब तक जो मांगे लोगों की जुबां और राजनीतिक नारों में गूंजती थी। वो अब सूक्ष्म रूप में तैयार है। लेकिन हेमंत सोरेन का ये स्टेक्स कितने दिनों तक या महीनों तक लोगों को बांधते हैं, ये दृश्य भी दिलचस्प होगा। बीजेपी को ये भरोसा है कि हेमंत सोरेन सरकार का झूठ एक दिन सामने जरूर आएगा. वैसे अगर केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया तो गेंद हेमंत सोरेन के पाले में ही रहेगी। क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ेगी और तब चुनावी समर बीजेपी को 1932 खतियान, 27 प्रतिशत ओबीसी न्यूट्रिशन और सरना धर्म कोड पर जवाब देना मुश्किल होगा। हालांकि हेमंत सोरेन सरकार के सामने सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा स्थानीय नीतियों के तहत शामिल है। राज्य के लाखों बेरोजगार युवाओं का भविष्य सरकार की समान नीतियों पर टिकी है। अगर सरकार इस पर खरी नहीं उतरती तो हेमंत सोरेन सरकार भविष्य में खड़ी नहीं हो पाएगी।

टैग: भारत जोड़ो यात्रा, सीएम हेमंत सोरेन

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