बेटी बोझ न हो इसलिए नही लेते है पैसे :
24 जनवरी को देश में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। समाज में बच्चियों के प्रति सम्मान का भाव लाने, एक अनूठी पहल की जा रही है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसा अस्पताल है जहां बेटी के जन्म पर मां-बाप से एक रुपए भी नहीं लिया जाता। रायपुर के डॉ.देवेंद्र नायक पिछले एक साल से ये अभियान चला रहे हैं। इनकी टीम अब तक लगभग 100 डिलीवरी करवा चुकी है। इन 100 बेटियों के जन्म में डॉ देवेंद्र ने बच्ची के परिजनों से पैसे नहीं लिए। डॉ.देवेंद्र ने कहा- मेरा एक ही मकसद है कि समाज में बेटी को बोझ न समझा जाए। हम सुनते आ रहे हैं कि बेटी के जन्म लेने पर कहा जाता है, मुबारक हो, घर में लक्ष्मी आई है। बेटी के जन्म पर हम कोई चार्ज नहीं लेते, परिजन भी इससे बेहद खुश होते हैं। हमें दुआएं देते हैं। बेटी के जन्म पर मां को लेकर घर वाले कई बार अच्छी सोच नहीं रखते ये आज भी होता है, हमारी कोशिश है कि इस योगदान से हम समाज में एक बदलाव ला सकें।समाज को मुझे कुछ लौटाना है, आजीवन चलेगा अभियान
डॉ.देवेंद्र ने बताया कि मेडिकल फील्ड में 15 साल से भी अधिक का वक्त बिताने के बाद मेरी जिम्मेदारी है कि सोसायटी से मुझे जो कुछ मिला मैं उसे कुछ लौटाऊं। इस अभियान से मेरी यही मंशा है इसी वजह से एक साल पहले हमने इसे शुरू किया। ये कुछ महीने या साल नहीं बल्कि आजीवन चलेगा। हम आजीवन बेटियों के जन्म पर माता-पिता से एक रुपए भी नहीं लेंगे।
छत्तीसगढ़ के बाहर से आने वालों को भी लाभ
हाल ही में ओडिशा से आए कपल की बेटी के जन्म होने पर फ्री डिलीवरी की गई है। डॉ. नायक ने बताया कि न सिर्फ डिलीवरी बल्कि हम बेटी के पैदा होने पर दवाओं और ऑपरेशन या किसी भी तरह की मेडिकल क्रिटिकल कंडीशन में कोई चार्ज नहीं लेते हैं।बचपन में डॉक्टर्स को देखकर सोचा था डॉक्टर बनूंगा
डॉ देवेंद्र नायक ने लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद छत्तीसगढ़ का रुख किया। उन्होंने बताया कि परिवार में कोई भी मेडिकल फील्ड में नहीं था। मैंने बचपन में डॉक्टर्स के काम को देखा। ये भी देखा कि वो लोगों की मदद करते हैं, इसी से प्रभावित होकर मैंने तय कर लिया था कि बनना है तो डॉक्टर ही बनना है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस से जुड़े दिलचस्प पहलू
राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत साल 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी। 24 जनवरी का दिन बालिका दिवस को मनाने के लिए इसलिए चुना गया है, क्योंकि 1966 में 24 जनवरी के दिन ही इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थीं। यह दिन महिला सशक्तिकरण के लिहाज से भारतीय इतिहास में एक खास महत्वपूर्ण घटना थी, इसलिए इस दिन को ही बाद में राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है।