बिलासपुर: आदिवासी संस्कृति की झलक, जल-जंगल-जमीन बचाने आदिवासियों ने दिया संदेश|

अपनी अनोखी परंपरा और संस्कृति के लिए आदिवासी समाज पूरे विश्व में पहचाना जाता है। बस्तर के आदिवासियों के रीति-रिवाज, रहन-सहन और पूजा-पाठ सबसे अलग हैं, इसलिए इसे ‘अद्भुत बस्तर’ कहा जाता है। बस्तरवासियों की कोई भी धार्मिक या सामाजिक परंपरा बिना स्थानीय देवी-देवताओं के नहीं होती।
कुछ ऐसी ही मान्यता के साथ आदिवासियों की संस्कृति की झलक मंगलवार को बिलासपुर में देखने को मिली। सुबह उनके आराध्य देवों की शोभायात्रा से शुरू हुआ यह आयोजन शाम तक चलता रहा। इस आयोजन में हजारों की संख्या में समाज के लोग शामिल हुए।
विश्व आदिवासी दिवस पर शहर में आदिवासी पंरपरा और लोक नृत्यों की गूंज सुनाई देती रही। इस दौरान समाज के लोगों ने जल-जंगल और जमीन को बचाने का संदेश भी दिया। वहीं कर्मा, ददरिया, गौरा, भद्री जैसे लोकनृत्यों पर आदिवासी समाज के लोग झूमते भी रहे। कमर पर हाथ रखकर किए गए समूह नृत्य ने सबको आकर्षित कर लिया।
विश्व आदिवासी दिवस पर गोंडवाना महासभा के बैनर तले आयोजित आदिवासी सम्मेलन में समाज के युवक-युवतियां और सभी वर्गों की भीड़ उमड़ी। समाज के लोगों ने जरहाभाठा मंदिर चौक स्थित पोस्ट मैट्रिक हॉस्टल से अपने आराध्य देव की शोभायात्रा निकाली। उन्होंने अपने सांस्कृतिक देव की वंदना कर आरती उतारी। गौरी-गौरा, महादेव, बस्तर के ईष्ट देव आंगा देव और काली की पूजा की गई।
देवगीत की धुन पर अपने सांस्कृतिक परिधान में सज युवक-युवतियां जमकर थिरकते हुए जरहाभाठा से इंदु चौक, गर्ल्स डिग्री कॉलेज, मिशन हॉस्पिटल रोड होते हुए देवकीनंदन चौक, प्रताप चौक और सरकंडा के प्रमुख मार्ग से होकर सीपत चौक पहुंचे। इस दौरान भारी भीड़ के साथ डीजे की धुन पर समाज के लोग लोकनृत्य करते रहे। सुबह 9 बजे शुरू हुई शोभायात्रा दोपहर करीब 1.30 बजे साइंस कॉलेज मैदान पहुंची।
साइंस कॉलेज मैदान में आदिवासियों ने प्रकृति की पूजा की और बस्तर से लेकर आए अपने आराध्य देवी-देवताओं की स्थापना कर विशेष पूजा-अर्चना की। इस दौरान उन्होंने पेड़-पौधे के सामने नतमस्तक होकर जल-जंगल और जमीन का संरक्षक बनने का संकल्प लिया। प्रकृति की पूजा करने वाले इन लोगों ने आदिम परंपरा को सहेजने के लिए अपने बच्चों को भी साथ रखा, ताकि वे अपनी संस्कृति को भूल न सकें।
इस आयोजन में खास बात यह रही कि देशभर के विभिन्न राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। कार्यक्रम में समाज के पदाधिकारियों ने युवाओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि वर्तमान आधुनिकता के दौर में आगे बढ़ने के लिए शिक्षा ही एकमात्र सहारा है। शिक्षा से बड़ा कोई धन नहीं है और हमें इसे नहीं छोड़ना है।
आदिवासी सम्मेलन के दौरान शहर में जगह-जगह आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली। आदिम जाति की पहचान और प्रतीकों का प्रदर्शन महिलाओं और युवतियों के साथ ही युवकों ने भी किया। वहीं, कार्यक्रम स्थल में समाज के लोगों ने अपने पारंपरिक डंडा नृत्यों के साथ ही कर्मा, ददरिया, गौरा, भद्री का भी प्रदर्शन किया। कमर पर हाथ रखकर समूह नृत्य करते आदिवासियों ने सबका मन मोह लिया। वहीं, गौरी मारियाकर्मकांडीय नृत्य के साथ ही अन्य पारंपरिक नृत्यों की प्रस्तुति दी।
मंगलवार को आदिवासी सम्मेलन और शोभायात्रा के चलते शहर में जाम की स्थिति निर्मित हो गई। सरकंडा क्षेत्र के राजकिशोर नगर से लेकर साइंस कॉलेज और महामाया चौक के साथ ही अरपा के नए पुल में वाहनों की लंबी कतार लगी रही। इस दौरान रैली के चलते लोग घंटों जाम में फंसे रहे।
गोंडवाना गोंड़ महासभा के प्रदेशाध्यक्ष आइएएस नीलकंठ टेकाम ने कहा कि सम्मेलन में मुख्यमंत्री को समाज के विकास के लिए मांग पत्र सौंपा गया है। उन्होंने मांगों को पूरा करने का भरोसा दिलाया है। बिलासपुर में समाज का यह आयोजन पूरी तरह से सफल रहा है और सभी वर्ग के लोगों ने सहयोग दिया है।