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हर हर महादेव की गूंज पंचमुखी बूढ़ा महादेव से 18 किमी की पदयात्रा कर लाखों श्रद्धालुओं ने किए भोरमदेव बाबा के दर्शन…देखिये तहलका न्यूज़ की खास रिपोर्ट…

कबीरधाम जिले का धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर स्थल भोरमदेव धाम एक बार फिर सावन के पवित्र अवसर पर आस्था और भक्ति का केंद्र बना रहा। बूढ़ा महादेव मंदिर से भोरमदेव बाबा तक लगभग 18 किलोमीटर लंबी पदयात्रा में इस वर्ष लाखों श्रद्धालुओं ने उत्साह, श्रद्धा और भक्ति के साथ भाग लिया।

हर उम्र के लोग – युवा, महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे – हाथों में डमरू, झंडा और भक्ति ध्वज लिए ‘हर हर महादेव’ के जयकारे लगाते हुए पैदल यात्रा पर निकले। यात्रा मार्ग पर कई श्रद्धालु भोलेनाथ के भजनों पर झूमते और नृत्य करते नजर आए। रास्ता मानो शिवमय हो गया था।

विशेष पूजा-अर्चना एवं जलाभिषेक
भोरमदेव मंदिर में पहुंचते ही भक्तों ने बाबा भोरमदेव का दर्शन कर विधिवत जलाभिषेक किया। सावन के सोमवार को आयोजित इस विशेष आयोजन में शिवभक्तों ने गंगाजल, फूल, बेलपत्र, धतूरा और भस्म अर्पित कर बाबा का पूजन किया। मंदिर प्रांगण में घंटों तक भक्तों की लंबी कतारें लगी रहीं।

प्रशासनिक व्यवस्था रही चाक-चौबंद
भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने पूरे आयोजन की भव्य तैयारी की थी। कवर्धा से भोरमदेव तक यात्रा मार्ग पर जलपान, स्वास्थ्य सुविधा, प्राथमिक चिकित्सा, मोबाइल टॉयलेट, एंबुलेंस और पुलिस सहायता चौकियों की व्यवस्था की गई थी।

“श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जिला प्रशासन ने पूरी तैयारी की है। ये आयोजन हमारी सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।”

गोपाल वर्मा कलेक्टर : “भोरमदेव शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है, और ये पदयात्रा हमारे जिले की पहचान बन चुकी है। हम इसे हर वर्ष और बेहतर बनाएंगे।”

सेवा में जुटे सामाजिक संगठन
यात्रा मार्ग में जगह-जगह सामाजिक, धार्मिक और युवाओं की संस्थाओं ने निशुल्क जलपान, फल वितरण, छाछ, शरबत और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था की। श्रद्धालुओं ने इन सेवाओं की जमकर सराहना की।

सांस्कृतिक झलकियां भी रही आकर्षण का केंद्र
रास्ते भर भक्तों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों, झांकियों और नृत्य के माध्यम से भक्ति का माहौल बनाया। स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झांकियों में शिव-पार्वती विवाह, तांडव नृत्य, गंगा अवतरण आदि के दृश्य खास आकर्षण का केंद्र रहे।

भोरमदेव धाम की वादियों में जब भक्तों की जयकार गूंजी और भोलेनाथ की आरती के साथ वातावरण शिवमय हुआ, तो मानो पूरी प्रकृति भी बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गई। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि जिले की एकता, समर्पण और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्सव भी बन गया।

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